हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए बाजरे की फसल संबंधी जारी की हिदायतें
हिसार,
प्रदेश मेें मानसून जल्द ही दस्तक देने वाला है। ऐसे में किसान भी फसलों की बिजाई के लिए तैयार हैं। बाजरा हरियाणा एवं पुरे भारत में गेहूं, धान, मक्का एवं ज्वार के बाद उगाई जाने वाली एक मुख्य खादान्न फसल है। मानसून के साथ बाजरे की बिजाई का समय भी आ गया है। बाजरे की बिजाई के लिए जुलाई का प्रथम पखवाड़ा सबसे उत्तम समय है परंतु बारानी इलाकों में मानसून की पहली वर्षा होने पर ही बिजाई करें। इसी को ध्यान में रखते हुए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर के.पी. सिंह ने किसानों से आह्वान किया कि वे अपने उपलब्ध साधनों के हिसाब से बीज आदि का प्रबंध कर लें। बाजरे की अच्छी पैदावार के लिए किसान संकर बाजरे का हर साल नया बीज लेकर ही बोएं। उन्होंने बतया कि बाजरे की फसल सितम्बर के अन्त या अक्तूबर में पक कर तैयार हो जाती है।
विश्वविद्यालय द्वारा अनुमोदित बाजरे की मुख्य किस्में
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि विश्वविद्यालय ने बाजरे की दो नई बायोफोर्टीफाइड किस्मों का अनुमोदन किया है जिनमे लौह तत्व एवं जिंक अन्य किस्मों के मुकाबले अधिक मात्रा में पाया जाता है। इनमें एच एच बी 299 एक अधिक लौह युक्त (73 पीपीएम) संकर बाजरा किस्म हैं। इसकेदानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 15.8 क्विंटल व 40-42 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म 80-82 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसके अलावा एच एच बी 311 किस्म भी अधिक लौह युक्त (83 पीपीएम) संकर बाजरा किस्म हैं। इसके दानों व सूखे चारे की औसत उपज क्रमश: 15 क्विंटल व 35.2 क्विंटल प्रति एकड़ है। यह किस्म 75-80 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। ये दोनों किस्में अच्छा रखरखाव करने पर एचएचबी 299 व एचएचबी 311 क्रमश: 19.6 व 18.0 क्विंटल प्रति एकड़ तक पैदावार देने की क्षमता रखती हैं। ये किस्में जोगिया रोगरोधी हैं। उन्होंने बताया कि इन किस्मों के अलावा बाजरे की मुख्य किस्मों में एच एच बी-223, एच एच बी 197, एच एच बी-67 (संशोधित), एच एच बी 226, एच एच बी 234, एच एच बी 272 शामिल हैं।
ऐसे करें खेत की तैयारी
विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.के. सहरावत ने बताया कि बाजरे की बिजाई जुलाई माह के प्रथम पखवाड़े में उचित होती है, किंतु बारानी इलाके जो बारिश पर निर्भर करते हैं, वहां मानसून की पहली वर्षा होने पर ही बिजाई करें। इसके अलावा 10 जून के बाद 50 से 60 मिलीमीटर वर्षा होने पर भी बिजाई की जा सकती है। उन्होंने कहा कि किसान खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और बाद में एक या दो जुताई देशी हल से करें। इसके बाद फौरन सुहागा लगाकर अच्छी तरह तैयार करें ताकि घास-फूस न रहे। बारानी क्षेत्रों में वर्षा से पहले खेत के चारों तरफ खूब मजबूत मेढ़ बनाएं ताकि बारिश का पानी खेत में ही जमा हो जाए और आगामी फसल के भी काम आ सके।
बीजोपचार अवश्य करें किसान
किसान बाजरे का प्रति एकड़ 1.5 से 2 किलोग्राम बीज बोएं ताकि 60-65 हजार पौधे प्रति एकड़ बारानी अवस्था में तथा 70-75 हजार पौधे सिंचित अवस्था में प्राप्त हो सकें। बिजाई पंक्तियों में करनी चाहिए तथा इनका फासला 45 सै.मी. रखकर इस प्रकार करें कि बीज 2.0 सै.मी. से ज्यादा गहराई पर न पड़े। पौधे से पौधे की दूरी 10 से 12 सै.मी. रहे। यदि बीज पहले से उपचारित न हो तो डाऊनी मिल्ड्यू (जोगिया या हरी बालों वाला रोग) की शुरुआती रोकथाम के लिए बीज को 6 ग्राम मैटालेक्सिल 35 प्रतिशत प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित कर देना चाहिए। बाजरे में सिफारिश की गई खादों के साथ-साथ बायोमिक्स (एजोटोबैक्टऱ, एजोस्पाइरिलियम़, पी.एस.बी.) का प्रयोग करने से पैदावार में वृद्धि होती है; प्रति एकड़ बीज को 100 मि.ली. बायोमिक्स से उपचारित करना चाहिए। बिजाई के दो से तीन सप्ताह बाद ज्यादा पौधों का विरलन करना तथा जहां कम पौधे हों वहां पर खाली जगह को भरना चाहिए । वर्षा वाले दिन यह काम अति उचित है ताकि एक एकड़ में उचित संख्या में पौधे प्राप्त हो सकें।
निराई-गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण
फसल में खाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर दें। बिजाई के समय आधी नाइट्रोजन तथा पूरी फास्फोरस (16 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 8 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति एकड़ बारानी क्षेत्रों में तथा 62.5 कि.ग्रा. नाइट्रोजन 25 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति एकड़ सिंचित क्षेत्रों में) तथा शेष नाइट्रोजन की मात्रा सिंचित अवस्था में दो भागों में तीन व पांच सप्ताह बाद प्रयोग करें व बारानी अवस्था में बची हुई आधी मात्रा बिजाई के 20 से 30 दिन के बाद किसी दिन बारिश होने के बाद डालें। बिजाई के तुरन्त बाद 400 ग्राम एट्राजीन प्रति एकड़ 250 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ें। यदि बिजाई के तुरन्त बाद का प्रयोग न कर सकें तो बिजाई के बाद 10 से 15 दिन तक भी उतनी ही मात्रा प्रयोग कर सकते हैं। वर्षा न होने पर फुटाव, फूल आना व दानों की दूधिया अवस्था पर सिंचाई अवश्य करें। बाजरे की फसल में अगर ज्यादा वर्षा हो गई हो तो कुछ घटों के बाद पानी अवश्य निकाल देना चाहिए।
बढ़ रही है बाजरे की डिमांड
बाजरें में मुख्यत: 12.8 प्रतिशत प्रोटीन 4.8 ग्राम वसा 2.3 ग्राम रेशे 67 ग्राम कार्बोहायड्रेट एवं खनिज तत्त्व जैसे कैल्शियम (16 मिली ग्राम), लौह (6 मिली ग्राम), मैग्नीशियम (228 मिली ग्राम), फॉस्फोरस (570 मिली ग्राम), सोडियम (10 मिली ग्राम), जिंक (3.4 मिली ग्राम), पोटेशियम (390 मिली ग्राम), कॉपर(1.5 मिली ग्राम), पाया जाता है। इसमें गेहूं एवं चावल से अधिक आवश्यक एमिनो अम्ल पाये जाते हैं। बाजरे के दानों का सेवन सुजन रोधी, उच्चरक्तचापरोधी, कैंसर रोधी होता है एवं इसमें इसमें पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट यौगिक हृदयाघात के जोखिम एवं आंत्र के सूजन को कम करने में मदद करते है। बाजरा में उपयुक्त वर्णित खाद्यान फसलों के मुकाबले सुखा, निम्न उपजाऊ क्षमता, उच्च लवण उक्त भूमि एवं उच्च तापमान के प्रति अधिक प्रतिरोधक क्षमता पाई जाती है। अत: इस फसल का उत्पादन ऐसी भूमि में भी किया जा सकता है जहाँ पर अन्य फसल लेना संभव न हो. इसके दानो में ग्लूटेन लगभग न के बराबर होता है जबकि गेहूं में यह मुख्य प्रोटीन होता है जो की सिलिअक, असहिष्णुता, स्व-प्रतिरक्षित रोग, एथेरोस्क्लेरोसिस, एलर्जी, और आंतों की पारगम्यता बिमारी का मुख्य कारण है। अत: उक्त बीमारी वाले लोगो को डॉक्टर द्वारा बाजरा खाने की सलाह दी जाती है। बाजरे का सेवन टाइप -2 डायबिटीज को रोकने में सहायक है इसकी इन्ही विशेषताओं के कारण इसे ‘नुट्री सीरियल‘ नाम दिया गया है।