हिसार

सामयिक प्रबंधन से शुष्क क्षेत्र में भी किसान ले सकते उचित उत्पादन : कुलपति समर सिंह

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने वर्षा पर निर्भर क्षेत्रों के किसानों से की खरीफ फसलों के लिए सामयिक प्रबंधन की अपील

हिसार,
प्रदेश में सिंचाई के साधनों के बढऩे के बावजूद कुल खेती योग्य भूमि का लगभग 20 प्रतिशत भाग शुष्क खेती के अंतर्गत आता है, जो कि मुख्यत: वर्षा पर आधारित है। इसलिए विषम परिस्थितियों में शुष्क क्षेत्रों के लिए खरीफ फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए सामयिक प्रबंधन अति आवश्यक है। इसे अपनाकर किसान निश्चित रूप से अपनी फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं।
यह बात हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफसर समर सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए कही। उन्होंने कहा कि बाजरा खरीफ मौसम की प्रमुख फसल होने के साथ ही शुष्क क्षेत्रों में इसके उत्पादन का भी महत्वपूर्ण योगदान है। प्रदेश में कुल वर्षा अधिकतर दो महीनों के अन्दर ही मध्य जुलाई से मध्य सितम्बर तक हो जाती है। यदि हम पिछले 10 वर्षों के अंतर्गत वर्षा की मात्रा, मानसून के आगमन व वापसी को देखें तो कई बार तो बारिश सामान्य से भी कम हुई है और कई बार सूखे की स्थिति का भी सामना करना पड़ा है।
ये हैं शुष्क क्षेत्रों की मुख्य समस्याएं
विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. आरएस हुडा ने बताया कि शुष्क क्षेत्रों में किसानों को मुख्यत: वर्षा की कमी, वर्षा के समुचित वितरण का अभाव, मानसून की जल्दी वापसी व लंबे समय तक वर्षा का न होना आदि समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन क्षेत्रों में औसत 300-500 मि.मी. वर्षा प्रतिवर्ष होती है परंतु उपर्युक्त असामान्य परिस्थितियों के कारण यह फसलों की ज़रूरत को पूरा करने में असमर्थ हो जाती है तथा किसान को फसल का भरपूर लाभ नहीं मिल पाता। इसलिए इन्हीं परिस्थितयों को ध्यान में रखकर ही किसानों के लिए सामयिक प्रबंधन अति आवश्यक है।
ऐसे करें सामयिक प्रबंधन
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि सामयिक प्रबंधन के लिए किसान कुछ विशेष ध्यान रखकर अपनी फसल की पैदावार बढ़ा सकते हैं। उन्होंने सामयिक प्रबंधन के लिए निम्रलिखित कारण बताए हैं जो इस प्रकार हैं मानसून का देर से आना : इस दौरान बाजरे की एचएचबी 67 संशोधित प्रजाति की किस्म का प्रयोग कर सकते हैं क्योंकि यह कम अवधि की किस्म होने के कारण पछेती बोने पर भी अच्छी पैदावार देती है। बाजरे की बिजाई जुलाई के अन्तिम सप्ताह तक कर सकते हैं। बाजरे की तीन सप्ताह पुरानी नर्सरी के पौधों को जुलाई के अंत से अगस्त के दूसरे सप्ताह तक रोपाई कर सकते हैं। इसके अलावा मूंग, लोबिया एवं ग्वार की अगस्त के प्रथम सप्ताह तक बिजाई कर सकते हैं।
फसल का प्रारंभिक दशा के दौरान सूखाग्रस्त होना : अगर फसल प्रारंम्भिक दशा में सूखे की चपेट में आ जाती है तो दोबारा वर्षा होने पर खाली स्थानों पर बाजरे की पौध की रोपाई कर सकते हैं। साथ ही पहिए वाला कसौला द्वारा भूमि पलवार कर सकते हैं।
बिजाई के समय लगातार वर्षा का होना : अगर बिजाई के समय लगातार बारिश हो तो सूखे खेतों मेें रीजर-सीडर द्वारा डोली व नाली विधि से बिजाई करनी चाहिए। मानसून की वर्षा होने से पहले बाजरे की पौध तैयार रखनी चाहिए ताकि वर्षा के तुरंत बाद बाजरे की पौध की रोपाई की जा सके।
मानसून की जल्दी वापसी : अगर मानसून की जल्द वापसी हो तो बाजरे की प्रत्येक तीसरी लाइन को काटकर चारे में प्रयोग कर सकते हैं। इसके अलावा फसल की निराई-गोड़ाई करने के पश्चात् सरसों की तूड़ी 4 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पलवार कर सकते हैं। इसके अलावा यदि संभव हो तो वर्षा के अपवाह को रोककर जमा किए गए वर्षा के पानी से फसलों की संवेदनशील अवस्था में सिंचाई की जा सकती है।
पैदावार बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किसानों के लिए खास सुझाव
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सहायक निदेशक (विस्तार शिक्षा) डॉ. सूबे सिंह व सस्य विज्ञानी डॉ. सुरेंद्र कुमार शर्मा ने किसानों को सामयिक प्रबंधन के लिए सुझाव देते हुए कहा कि किसान अपनी भूमि को अच्छी तरह जोतकर तैयार रखें व खेत की मेढ़ बंधी भी करें। सप्ताह में लगभग 25-30 मि.मी. वर्षा (कम से कम एक वर्षा 15-20 मि.मी.) होने पर फसल की बुवाई करें। मानसून शुरू होने के बाद फसलोंं की बिजाई जल्द-से-जल्द करें। खेती योग्य भूमि के 60 प्रतिशत हिस्से में खरीफ फसलों को बोना चाहिए व बाकी 40 प्रतिशत् हिस्सा रबी फसलों के लिए छोडऩा चाहिए। उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि ऐसे क्षेत्र जहां जमीन पर पपड़ी की समस्या न हो, बाजरे की बिजाई दो पोरा बारानी हल से करनी चाहिए। जमीन पर पपड़ी बनने वाले क्षेत्रों में देसी खाद की मात्रा 4 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करनी चाहिए। खरीफ फसलों वाले क्षेत्र के आधे भाग में बाजरा, एक चौथाई में ग्वार व बाकी एक चौथाई में दाल वाली फसलों की बिजाई की जानी चाहिए। उन्होंने किसानों से आह्वान् किया कि जहां तक संभव हो किसान डोली व नाली विधि द्वारा बिजाई करके पानी का संग्रहण करें। फसलों की विकसित किस्मों के प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें। फसलों की 45 सैं.मी. या 30:60 सैं.मी.के अनुपात से पंक्तियों में बिजाई करेें। बाजरे व मंूग की भरपूर फसल लेने के लिए इनकी पट्टिका विधि द्वारा 6:3 या 8:4 के अनुपात से 30 सैं.मी. की पंक्तियों में बिजाई करें। बाजरे की तीन सप्ताह पुरानी नर्सरी के पौधों की वर्षा होने पर रिक्त स्थानों में रोपाई करें। बाजरे में 16 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 8 कि.ग्रा. फास्फोरस व 3 वर्ष में एक बार 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति एकड़ तथा दाल वाली फसलों में 8 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 16 कि.ग्रा. फास्फोरस व 10 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए। बाजरे में फास्फोरस की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा को बिजाई से पहले आखरी जुताई पर खेत में पोर दें तथा बाकी की आधी नाइट्रोजन खड़ी फसल में जब आखिरी निराई-गोड़ाई का समय हो तथा भूमि में जब नमी की मात्रा ठीक हो, तब देनी चाहिए। दलहनी फसलों में खाद की पूरी मात्रा बिजाई के समय दे देनी चाहिए। पहिए वाले कसौले से समय-समय पर निराई-गोड़ाई करते रहें। यदि फसल अवधि के बीच में सूखा पड़ जाता हैं तो बाजरे की बिजाई के 40 दिन बाद प्रत्येक तीसरी लाइन को काटकर चारे के लिए प्रयोग करें।

Related posts

अगले 24 घंटे में हो सकती है बरसात, किसान करे उपज को सुरक्षित

हरियाणा पुलिस के ADGP ओपी सिंह के साले सुशांत राजपूत का निधन बेहद दु:खद

Jeewan Aadhar Editor Desk

कोरोना से बचाव में योग की भूमिका अह्म : केपी सिंह