आदमपुर,
प्रतिवर्ष 14 सितम्बर आते ही हम हिन्दी बोलने, लिखने, कहने, सुनने, सुनाने इत्यादि के लिए बड़े बड़े प्रचार माध्यमों का प्रयोग तो करते हैं किन्तु दशकों से अपनी स्व-भाषा में हुए व्यापक संक्रमण की मुक्ति हेतु कोई विचार व्यवहार में नहीं ला पाते। यह बात श्री कृष्ण प्रणामी सीनियर सेकेंडरी स्कूल के प्राचार्य तोलाराम शर्मा ने हिंदी दिवस के अवसर पर आनलाइन सम्बोधन में कही।
उन्होंने कहा विदेशज शब्दों का संक्रमण हिन्दी भाषा में इतना गहराई से पैठ बिठाए हुए है कि हमें कभी पता ही नहीं चलता कि ये शब्द वास्तव में हिन्दी के नहीं हैं। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि शब्दों के इस संक्रमणकारी जंजाल से हमारे भाषाई साहित्यकार भी अछूते नहीं रहे और उन शब्दों को निकल कर आपको यह कहा जाए कि इनका हिन्दी समानार्थी बताओ तो आपको लगेगा कि ये तो हिन्दी के ही हैं।
उन्होंने कहा कि आजकल एक विचारधारा काम कर रही है हिंदी द्वारा विदेशज शब्दों का समावेश कर लेने से हिंदी समृद्ध हुई है। वास्तव में यह तथ्य केवल मन को बहलाने के लिए ही उपयुक्त है। इन विदेशज शब्दों के संक्रमण के कारण हमारे बहुत से शब्द बोलचाल से विलुप्त होते जा रहे हैं। इसके हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा। उन्होंने कहा ‘हिन्दी है माथे की बिंदी—इसका मान बढ़ाएंगे,हम सब भारतवासी मिलकर इसे समृद्ध बनाएंगे।’