पटना,
नेपाल में साल 2013 की 26 जनवरी को कॉलगर्ल्स के साथ आपत्तिजनक हालत में मिले तीन लॉअर कोर्ट के जजों की बर्खास्तगी पर बिहार सरकार ने मुहर लगा दी है। इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग ने अधिसूचना जारी की है। 8 नवंबर साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने तीनों की बर्खास्तगी का फैसला राज्य सरकार पर छोड़ दिया था। सेवा से बर्खास्त तीनों जज बकाया और अन्य लाभों से भी वंचित रहेंगे।
गौरतलब है कि बिहार में निचली अदालत के इन तीन न्यायधीशों में समस्तीपुर फैमिली कोर्ट के तत्कालीन प्रधान न्यायधीश हरिनिवास गुप्ता, अररिया के तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश जितेंद्र नाथ सिंह और अररिया के तत्कालीन अवर न्यायधीश सह मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी कोमल राम शामिल हैं। 12 फरवरी 2014 से ही इन तीनों की बर्खास्तगी प्रभावी रहेगी।
बर्खास्त हुए तीनों न्यायिक अधिकारी नेपाल के एक होटल में पुलिस रेड के दौरान पकड़े गए थे। पुलिस को तीनों एक होटल में महिलाओं के साथ आपत्तिजनक हालात में मिले थे। हालांकि, बाद में नेपाल में पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया था। नेपाल के एक स्थानीय अखबार में खबर छपने के बाद मामला उजागर हुआ था। इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने पटना हाईकोर्ट के तत्कालीन महानिबंधक को पत्र लिखा था।
पटना हाईकोर्ट ने मामले में गौर करते हुए एक जिला जज को जांच सौंपी थी जिनकी रिपोर्ट में बताया गया कि उस समय तीनों न्यायधिकारी नेपाल नहीं भारत में थे। साथ ही रिपोर्ट में बताया कि जिस नेपाली अखबार में यह खबर छपी थी उसने खुद माना है कि खबर गलत थी और एक महीने बाद माफीनामा भी छापा।
हालांकि, पटना हाईकोर्ट इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हुआ और सच पता लगाने के लिए गृह मंत्रालय से सहायता की मांग की। गृह मंत्रालय ने मामले में जांच शुरू की और पाया कि तीनों जजों के मोबाइल फोन साल 2013 की 26 और 27 जनवरी को लगातार बंद रहे और जब वे खुले तो उनकी लोकेशन नेपाल के पास की ट्रेस की गई।
गृह मंत्रालय की खोजबीन के बाद पटना हाईकोर्ट में एक प्रस्ताव पास किया गया जिसके तहत बिहार सरकार तीनों जजों को बिना किसी न्यायिक जांच के बर्खास्त कर सकती है। कोर्ट के फैसले के खिलाफ तीनों जज सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए और कहा कि उन्हें बिना किसी जांच के बर्खास्त नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने तीनों की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।