आदमपुर,
देसी घी के प्रसिद्ध आदमपुर नगरी को नकली घी के सौदागरों ने इस कदर जकड़ा कि अब यहां के बाजारों से ग्रामीण इलाको से आने वाला शुद्ध देसी घी गायब ही चुका है। मेन बजार और अनाज मंडी में दर्जनों दुकानों पर ग्रामीण इलाको का शुद्ध देसी घी मिलता था, लेकिन अब पूरे शहर में एक भी ऐसी दुकान नहीं है जहां पर केवल ग्रामीण इलाको का घी मिलता हो। नकली घी के सौदागरों ने आमजन के मन में इस कदर भय उत्पन्न किया कि वे अब दुकानों पर जाकर खुला घी लेने से ही परहेज करने लगे। चूरमा, जलेबी और हलवा का दिवाना यह क्षेत्र कभी डेयरी से बने घी से नफरत करता था लेकिन अब पूरा क्षेत्र इन्हीं डेयरी घी पर निर्भर हो गया है। अब ना हलवाईयों की दुकान से इलाके के घी में बनती जलेबी की सुगंध हवा में मिलती है और ना घरों में बन रहे हलवे में इलाके के शुद्ध देसी घी की महक आसपास के वातावरण को महकाती है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आदमपुर की जिस देसी घी की जलेबियों की दिवानी थी अब वो घी और जलेबियां इतिहास के पन्नों में ही सिमट कर रह गई है।
आदमपुर क्षेत्र में कुछ लोगों के लालच से मिलावटी घी का सफर आरंभ हुआ और देखते ही देखते इस लालच में गांव के गांव शामिल होते चले गए। कई गांव तो मिलावटी घी को लेकर इस कदर बदनाम हुए कि उन्हें ही देसी घी को क्षेत्र से गायब करने का कारण माना जाने लगा है। आज से करीब 20 साल पहले इन गांवों में मिलावटी घी का खेल आरंभ हुआ था। यहां के कुछ ग्रामीणों ने कड़ावनी के दूध में बनस्पति घी मिलाना आरंभ कर दिया। इसके बाद मक्खन में यह घी मिल जाता और इसे तपाकर बाजार में बेच दिया जाता। इससे दुकानदारों के पास ग्राहकों की शिकायत आने लगी। धीरे-धीरे इस मिलावट की पोल खुलने लगी तो कुछ ग्रामीणों ने भैंस को चारे में में बनस्पति घी देना आरंभ कर दिया। कई गांव तो मिलावटी घी में इस कदर बदनाम हुए कि यहां कहा जाने लगा कि उक्त गांव का घी पूरी तरह से नकली है। क्योंकि इन गांवों में लस्सी मिलती नहीं और घी प्रचुर मात्रा में मिल जाता था। ये गांव अपना पूरा दूध डेयरी पर बेच देते और मिलावटी घी तैयार करके बाजार में बेच जाते। ऐसे में कुछ ग्रामीणों की हरकत से आमजन शुद्ध देसी घी से दूरी बनाता चला गया और उसने देसी घी के नाम पर डेयरी घी को अपना लिया। बाद डेयरी घी का भी नकली ब्रांड यहां पर तैयार होने लगा। इसके चलते 6 माह का घी एक साथ 15 किलोग्राम का टीन के रुप में खरीदने वाला आमजन अब 1 किलोग्राम की पैकिंग की खरीद पर जोर देने लगा।
आदमपुर क्षेत्र में नकली घी और मिलावटी घी का कारोबार इस कदर छाया कि अब डेयरी के घी के 15 किलोग्राम के गत्ते के कार्टून भी अधिकतर दुकानों से ही गायब होते जा रहे हैं। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार आदमपुर में नामी देशी घी की कंपनियों के गत्ते के कार्टून 100 से 200 रुपये में बिक रहे हैं। ऐसे में दुकानदार अब घी आते ही कार्टून को उतार कर एक तरफ रख देते हैं। ये कार्टून काफी सावधानी से नीचे की तरफ से टेप उखाड़कर घी के पीपे से अलग किए जाते हैं। जानकारी के मुताबिक, ये कार्टून इन दुकानदारों से नकली व मिलावटी घी का कारोबार करने वाले लोग खरीदते है। वे अपने उत्पाद को पीपे में डालकर इन कार्टूनों में पैक कर देते हैं। ऐसे में आमजन इसे ऑरिजनल डेयरी उत्पाद समझकर खरीद लेता है। जानकारी के मुताबिक, नामी कम्पनियों के नाम से मिलावटी घी को विवाह-शादी व अन्य कार्यक्रमों के आयोजन में खपाया जा रहा है। आमजन बाहर की पैकिंग को देखता है। मिलावटी घी का काम करने वाले आमजन को कम्पनी के घी से 200 से 300 रुपए का भाव कम बताकर अपना उत्पाद उनको बेच देते हैं।
आदमपुर में पुलिस व खाद्य विभाग ने कई बार ऐसे घी बनाने वालों के यहां दबिश दी है। कई बार मिलावटखोरो को पकड़ा भी है। ये लोग अब बेशर्मी पर उतर आएं हैं। ये पकड़े जाने पर जेल तक जा चुके हैं। जेल से जमानत पर छुटकर फिर से इसी धंधे में लग जाते हैं। ऐसे में पुलिस भी कानून के आगे अब बेबस नजर आने लगी है। समाजिक स्तर पर शुरुआती दौर पर इन दुकानदारों का विरोध हुआ था लेकिन अब मिलावटी घी भी समाजिक ताने-बाने में पूरी तरह से रमा हुआ महसूस होने लगा है। लोग अब इन मिलावटी दुकानदारों का एक हिसाब से ये कहकर समर्थन ही करने लगे है कि जिन्हें सस्ता चाहिए उन्हें मिलावटी ही मिलेगा।
सूत्रों के अनुसार नकली घी बनाने में बनस्पति घी, रिफाइंड ऑयल और एसेंट का प्रयोग किया जाता है। सबसे पहले बनस्पति घी को गर्म किया जाता है और फिर उसमें रिफाइंड मिलाकर हिटर को बंद कर दिया जाता है। हिटर को बंद करने के बाद एसेंट को डाला जाता है। एसेंट के डालते ही घी दानेदार व खुशबुदार बन जाता है। वहीं हेल्थ एक्सपर्ट इस घी को सेहत के खतरनाक बताते हैं। उनका कहना है कि यह मिक्सर बैड फेट बन जाता है। यह शरीर के लिए काफी घातक होता है। इसका सेवन सीधे तौर पर कई बिमारियों को निमंत्रण देने के समान है।