आदमपुर,
हिसार शहर से 28 किमी दूर स्थित आदमपुर क्षेत्र का सीसवाल गांव ताम्रपाषाण युग का स्थल है। लगभग 3800 ईसा पूर्व की सीसवाल संस्कृति को सोथी-सीसवाल संस्कृति के नाम से भी जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार सीसवाल प्रारंभिक हड़प्पा संस्कृति का स्थल है, जिसे अन्यथा “पूर्व-हड़प्पा” सभ्यता के रूप में जाना जाता है।
पूर्व—हड़प्पा सभ्यता के इस गांव में एक शिव मंदिर है जिसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। इस शिव मंदिर को ऐतिहासिक सीसवाल धाम के नाम पुकारा जाता है। इतिहासकारों के पास पवित्र सीसवाल धाम का 750 वर्ष पुराना रिकॉर्ड भी उपलब्ध है। वर्तमान समय में सीसवाल धाम के शिव मंदिर का पिछले साढ़े तीन साल से जीर्णोद्धार चल रहा है। इसे गुजरात के कोटेश्वर महादेव मंदिर के स्वरूप में स्थापित किया जा रहा है। जीर्णोद्धार के बाद यह मंदिर देशभर के लिए आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र के रुप में स्थापित होगा।
श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र सीसवाल धाम महाभारत काल में पांडवों द्वारा स्थापित प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर है जो समाज के लिए एक धरोहर है। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही आसपास की जगह का भी सौंदर्यीकरण करवाया जा रहा है। मंदिर की भूमि पर गर्भगृह, सभाकक्ष, यज्ञशाला, पार्क आदि बनाए जा रहे हैं। शिव मंदिर के जीर्णाेद्धार के लिए अयोध्या राम मंदिर के आर्किटैक्ट व कारीगरों द्वारा नक्शा तैयार किया गया है। जीर्णाेद्धार के बाद मंदिर परिसर का स्वरूप बदल जाएगा। शिव मंदिर में शिवालय के अलावा अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी स्थापित किया जाएगा।
इसके अलावा सुंदर-सुंदर झांकियां भी सजाई जाएगी। भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए घुमावदार बेरीकेट्स लगाए जाएंगे। मंदिर परिसर में अनुमान से ज्यादा भीड़ होने पर श्रद्धालु आसानी से दर्शन कर सकेंगे। इन सबके अलावा बिजली-पानी की सुचारू व्यवस्था, जूताघर का निर्माण किया जाएगा।
पांडवों ने स्थापित किया था शिवलिंग:
प्राचीन ऐतिहासिक शिव मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडवों ने महाभारत काल के दौरान की थी। मंदिर का ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से साफ हो जाता है कि पुरातत्व विभाग के पास इस मंदिर का पिछले करीब 750 सालों का रिकार्ड उपलब्ध है। बताया जाता है कि इससे पूर्व का रिकार्ड स्वतंत्रता आंदोलन में जल गया था।
हिसार से उत्तर-पश्चिम दिशा में सिंधु घाटी की सभ्यता व मोहन जोदड़ो-हड़प्पा कालीन सभ्यता की समकालीन प्राचीन सीसवालिय सभ्यता वर्तमान गांव सीसवाल की जगह पनपी। सीसवालिय सभ्यता के कारण इस गांव का नाम सीसवाल पड़ा जो सरस्वती नदी की सहायक नदी दृश्दवंती के किनारे बसा हुआ था। भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई से इस सभ्यता का पता चला। प्रसिद्ध इतिहासकार डा.केसी यादव के शोध पत्रों मेें इसका विस्तृत विवरण मिलता है। भिवानी के पास नौरंगाबाद में सैन्धव सभ्यता पनपी। सीसवालिय लोगों की संपन्नता को देखते हुए सैन्धवों ने सीसवालिय लोगों पर आक्रमण कर दिया। हालांकि इस युद्ध में हार-जीत का वर्णन नही मिलता लेकिन इस युद्ध के बाद दोनों सभ्यताएं आत्मसात होकर एक हो गई तथा इसके सीसवालिय-सैन्धव सभ्यता कहा जाने लगा।
अज्ञातवास में ठहरे थे पांडव :
सीसवाल कुरुक्षेत्र-हस्तिनापुर जितना पुराना है। करीब 5150 साल पहले महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव सीसवालिय वनों में भी रहे तथा मां कुंती शिव भक्त थी। अपने कुछ समय के प्रवास के दौरान माता कुंती के आदेश पर पांडवों ने यहां शिवलिंग की स्थापना की जो वर्तमान में शिव मंदिर में मौजूद है।
बताया जाता है कि मंदिर के स्थान पर पहले एक फ्रास का पेड़ हुआ करता था जहां एक संत तपस्या करते थे। तपस्यारत संत को एक बार स्वप्न में पेड़ के नीचे शिवलिंग दबा हुआ दिखाई दिया। संत ने ग्रामीणों को इसकी जानकारी दी। बाद में खुदाई करने पर 9-10 फीट लंबा शिवलिंग मिला जो पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। यही शिवलिंग इस मंदिर की नियति का आधार बना। इसे एक चमत्कार व दैवयोग ही कहा जाएगा कि जब मंदिर निर्माण के लिए सामग्री को लेकर चिंता की गई तो आकाशवाणी हुई कि निर्माण कार्य शुरू कर दिया जाए, सामग्री उसी वृक्ष के नीचे से मिल जाएगी। मंदिर का निर्माण वृक्ष के नीचे से मिली तमाम आवश्यक सामग्री के साथ निर्बाध गति से हुआ। शिवालय में अब तक सुरक्षित पड़ी ईंट भी उसी वृक्ष के नीचे से निकली हुई बताई जाती है।
भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है सीसवाल धाम:
ग्रामीणों का दावा है कि यह भारत के सबसे प्राचीन चार मंदिरों में से एक है। अपने दावे का आधार वे केंद्रीय पुरातत्व विभाग से मिली सूचना को बताते हैं। यह सूचना मंदिर की प्राचीनता व ऐतिहासिकता से जुड़ी बताई गई है। शिवलिंग की लंबाई करीब चार फीट है और अंदर भी इतनी ही होने का अनुमान है। ऐसे प्राकृतिक एवं असाधारण शिवलिंग कम ही देखने को मिलते हैं। शिवलिंग के चारों ओर की शब्दावली एक विशेष भाषा में लिखी गई है, जो बहुत ही बारिक है और इसे सुक्ष्म आंखों से पढऩा नामुमकिन है। मंदिर के निर्माण के लिए खुदाई से ईंटें अपने आप में असाधारण हैं। जिनकी लंबाई 1.25 फीट व चौड़ाई 0.75 फीट है। इन तमाम विशिष्टताओं के चलते धार्मिक जगत में अपनी खास पहचान बना चुके इस मंदिर से जुड़े इतिहास को लिपिबद्ध करवाने की मांग शिव भक्त कई बार कर चुके हैं।
ग्रामीणों ने बताया कि अगर इस तरफ पुरात्तव विभाग सकारात्मक कदम उठाए तो इस प्राचीन शिव नगरी का आध्यात्मिक स्वरूप शिव भक्तों के सामने आ सकेगा तथा साथ ही यह शिवालय धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी सामने आ सकता है। प्रत्येक शिवरात्रि को यहां भव्य मेले का आयोजन होता है। श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लाकर यहां शिवलिंग पर चढ़ाते है।
ग्रामीणों ने बताया कि सीसवाल का यह शिवालय अपनी कई विशेषताओं और अद्भूत वातावरण के चलते देशभर में अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से असीम सुख की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां मन और लगन से पूजा करने पर मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि के दिन विशेष तरीके पूजा करने से अलग-अलग कामनाएं पूरी होती है। जिसके लिए सारी जानकारी मंदिर में उपलब्ध है।
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