धर्म

परमहंस संत शिरोमणि डॉक्टर श्री श्री 108 श्री सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—116

शिक्षा की डिग्री लेने और शिक्षित होने में काफी अंतर है। शिक्षा की डिग्री किताबी ज्ञान के आधार पर मिल सकती है लेकिन शिक्षा आपको अनुभाव,संस्कार,नैतिकता और व्यवहार से मिलती है। डिग्री धारक में प्राय: अहं होता है जबकि शिक्षित सदा विनम्र होता है। वह मानववादी होता है। उसकी वाणी और शब्दों में कोमलता और मिठास होती है।

प्रिय सुंदरसाथ जी, शिक्षा सदा अपनात्व लेकर आती है। छोटे—बड़े का भेद मिटाती है। शिक्षित व्यक्ति कभी अपने अधीनस्थ कर्मचारी को गौण महसूस नहीं होने देता। जबकि डिग्रीधारक स्वयं को बॉस मानकर काम करता है। वह अधीनस्थ कर्मचारी को अपना दास समझता है। उसे आर्डर देना आता है। वह स्वार्थी होता है। इसीलिए अधीनस्थ कर्मचारी उसको तब तक मान—सम्मान देते हैं जब तक वह बॉस है। जैसे ही बॉस बदलता है, अधीनस्थ कर्मचारी उससे किनारा कर लेते हैं।

वहीं जब शिक्षाधारक बॉस बनता है तो वह सबको साथ लेकर चलता है। कार्यालय में भाईचारा कामय करके सबको उचित सम्मान देता है। सबसे हंसकर बात करता है और सबकी समस्याओं पर गहनता से विचार करके उचित हल खोजता है। वह अपने कर्मचारियों के उत्साह और जोश को कम नहीं होने देता। कर्मचारियों को रोजाना नई चीजे सिखने के लिए प्रेरित करता है और स्वयं भी उनके विकास के लिए निरंतर प्रयास करता है। उनकी वाणी में अपनात्व होता है। वह परिवार की तरह सबको लेकर चलता है।

धर्मप्रेमी सज्जनों! सदा शिक्षित बनो। शिक्षित बनते ही फल देने वाले वृक्षों के समान झूकना सीख जाओं। कभी भी अपने वचनों से अधीनस्थ कर्मचारियों या किसी अन्य को कष्ट ना पहुंचाओं। अच्छी वाणी और अच्छा व्यवहार ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है।

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