मनुष्य को आत्म मंथन अवश्य करना चाहिए। ताकि वह सही गलत की पहचान कर सके और सही रास्ते का चुनाव कर सके। भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार एक व्यक्ति को खुद से बेहतर कोई ज्ञान नहीं दे सकता। इसलिए मनुष्य को समय-समय पर अपना आंकलन भी करना चाहिए।
हमें पता होता है कि हमने क्या गलत किया है। यदि इसे हम स्वीकार कर लें तो हमें उस गलती को छुपाने के लिए और गलतियां नहीं करनी पड़ेगी। अक्सर होता उल्ट है। बिल्कुल उल्ट करते हैं सब। एक गलती हो जाने पर हम देखते है इधर—उधर। किसी ने देखा तो नहीं। इसके बाद उस गलती को सही दर्शाने के चक्कर में एक के बाद एक गलती लगातार करते जाते हैं।
एक गलती के चलते अनेक गलतियां करते है और फिर पूरा जीवन उन गलतियों के जाल में उलझकर बीत जाता है। एक गलती की थी। उसे छुपाने के लिए इतनी गलतियां करनी पड़ी कि पूरा जीवन व्यतीत हो गया लेकिन गलतियों को सुधारने का समय नहीं मिला। इसलिए मनुष्य को रोजाना आत्ममंथन करना चाहिए।
आत्ममंथन करने से सही और गलत की पहचान होती है। इसके बाद हम सही रस्ते पर चल पाते हैं। सही रस्ते पर चलने वाले का जीवन पूरी तरह से सरल होता है। उसके पास किसी प्रकार का संताप नहीं होता। वह पूरा जीवन सहर्ष व्यतीत करता है।