भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते है, जो मेरे साथ हैं मैं उनके साथ हूं। संपूर्ण ब्रह्मांड मेरे ही अंदर है। मेरी इच्छा से ही यह फिर से प्रकट होता है और अंत में मेरी इच्छा से ही इसका अंत हो जाता है। मेरे लिए न कोई घृणित है न प्रिय, किंतु जो व्यक्ति भक्ति के साथ मेरी पूजा करते हैं, वो मेरे साथ हैं और मैं भी उनके साथ हूं। बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवृत्तियों से जुड़े हुए हैं और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
हे अर्जुन! कल्पों के अंत में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूं। मैं उन्हें ज्ञान देता हूं, जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।
मैं सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हूं, न कोई मुझे कम प्रिय है न अधिक। लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूं।
मेरी कृपा से कोई सभी कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी बस मेरी शरण में आकर अनंत अविनाशी निवास को प्राप्त करता है। हे अर्जुन! केवल भाग्यशाली योद्धा ही ऐसा युद्ध लड़ने का अवसर पाते हैं, जो स्वर्ग के द्वार के समान है।