भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के साथ ही उनके द्वारा दिए गए गीता के ज्ञान को जीवन में उतारने से हमारी कई परेशानियां दूर हो सकती हैं, जीवन में शांति मिल सकती है। महाभारत में अर्जुन ने युद्ध से पहले ही शस्त्र रख दिए थे और श्रीकृष्ण से कहा था कि मैं युद्ध नहीं करना चाहता। कौरव पक्ष में भी मेरे कुटुम्ब के ही लोग हैं, मैं उन पर प्रहार नहीं कर सकता। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि सुख-दुख सर्दी और गर्मी की तरह हैं। सुख-दुख का आना-जाना सर्दी-गर्मी के आने-जाने के जैसा है। इसीलिए इन्हें सहन करना सीखना चाहिए। जिसने गलत इच्छाओं और लालच का त्याग कर दिया है, सिर्फ उसे शांति मिल सकती है। इस सृष्टि में कोई भी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता, लेकिन बुरी इच्छाओं को छोड़ जरूर सकते हैं।
इस नीति का सरल अर्थ यह है कि हमारे जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। इनके विषय में परेशान नहीं होना चाहिए। अगर दुख है तो उसे सहन करना सीखना चाहिए। क्योंकि आज दुख है तो कल सुख भी आएगा। ये क्रम यूं ही चलता रहता है।
श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में अर्जुन से कहा कि तुम मेरा चिंतन करो, लेकिन अपना कर्म भी करते रहो। शास्त्र अपना काम बीच में छोड़कर केवल भगवान का नाम लेते रहने का नहीं कहते। कर्म किए बिना जीवन सुखमय और सफल नहीं हो सकता है। सिर्फ अपने कर्म से हमें वो सिद्धि मिल सकती है, जो संन्यास लेने से भी नहीं मिल सकती है। इसीलिए कर्म पर ध्यान लगाना चाहिए। जब तक कर्म नहीं करेंगे तब तक ये जीवन पूर्ण नहीं हो सकता है।
श्रीकृष्ण की सभी कोशिशों के बाद भी कौरव और पांडवों के बीच होने वाला युद्ध नहीं टल सका और दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं। कौरवों की सेना में दुर्योधन, शकुनि के साथ भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य अश्वथामा जैसे महारथी थे। अर्जुन कौरव पक्ष में अपने वंश के आदरणीय लोगों को देखकर दुखी हो गए थे। अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा कि मैं भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य पर बाण नहीं चला सकता। ऐसा कहते हुए अर्जुन ने शस्त्र रख दिए थे। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाने के लिए गीता का ज्ञान दिया था।