धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—292

पुराने समय में एक गुरुकुल में काफी शिष्य एक साथ रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। आश्रम काफी बढ़ा था। सभी शिष्यों के रहने की जगह अलग-अलग थी। एक शिष्य सभी शिष्यों के साथ मिलकर रहता था। हर काम में वह सभी का सहयोग करता था। कुछ दिनों के बाद अचानक उस शिष्य ने अकेले रहना शुरू कर दिया।

आश्रम में किसी को ये बात समझ नहीं आई कि वह अकेले क्यों रहने लगा है। सभी शिष्यों ने अपने गुरु को ये बात बताई तो एक शाम गुरु उस शिष्य की कुटिया में पहुंचे। ठंड के दिन थे। शिष्य ने अपने कुटिया में थोड़ी सी लकड़ियां जल रखी थी और वह वहीं बैठा हुआ था।

गुरु शिष्य की कुटिया में पहुंचे तो शिष्य बहुत सामान्य का अभिवादन किया और वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गया। गुरु भी उसके पास बैठ गए। काफी समय तक दोनों चुपचाप बैठे रहे। फिर गुरु उठे और उन्होंने जलती हुई लकड़ियों में से एक लकड़ी निकालकर अलग रख दी।

शिष्य ये सब देख रहा था। थोड़ी ही देर में अलग रखी हुई लकड़ी बुझ गई। अब उस लकड़ी में थोड़ी सी भी आग नहीं बची थी। गुरु फिर उठे और उन्होंने उस लकड़ी को जलती हुई लकड़ियों के साथ फिर से रख दिया। वह लकड़ी फिर से जलने लगी।

अब गुरु शिष्य की कुटिया से बाहर जाने लगे। शिष्य ने गुरु से कहा कि गुरुदेव आपका संदेश मैं समझ गया हूं। हमें संगठन में रहना चाहिए। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, एक साथ रहेंगे तो हमारी हर परेशानी आसानी से हल हो सकती है। अकेले रहेंगे तो छोटी सी समस्या भी मुश्किल हो जाएगी। छोटे काम में भी आसानी से सफलता नहीं मिलेगी।

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