एक गांव में एक संत रहते थे। वह हर दिन घास की टोकरी बनाते और उसे नदी में बहा देते थे। एक दिन, उन्होंने सोचा कि यह काम व्यर्थ है, क्योंकि इससे किसी को लाभ नहीं हो रहा है। इसलिए, उन्होंने टोकरी बनाना बंद कर दिया। कुछ दिन बाद, वह नदी के किनारे टहल रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक वृद्ध महिला दुखी बैठी है।
संत ने पूछा तो महिला ने बताया कि वह नदी में बहकर आने वाली टोकरियों को बेचकर अपना गुजारा करती थी, लेकिन अब टोकरी आना बंद हो गई है। इसलिए वह दुखी है।
महिला की बात सुनकर संत को अपनी गलती का अहसास हुआ। उन्होंने फिर से टोकरी बनाना शुरू कर दिया और नदी में बहाना शुरू कर दिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमें निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करनी चाहिए, चाहे उससे हमें कोई लाभ हो या न हो। निस्वार्थ सेवा से दूसरों को लाभ होता है और हमारे मन को भी शांति मिलती है।