श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ लंका पहुंच गए थे। युद्ध से पहले श्रीराम युद्ध को टालने की एक कोशिश और करना चाहते थे। उन्होंने अंगद को दूत बनाकर रावण के दरबार में भेजा। जैसे ही अंगद ने रावण की लंका में प्रवेश किया तो उसकी भेंट रावण के एक पुत्र से हुई। अंगद ने रावण के पुत्र को पराजित कर दिया। अंगद जब रावण के दरबार में पहुंचा तो उसने रावण को बालि के बारे में बताया। बालि का नाम सुनते ही रावण थोड़ा असहज हो गया था।
अंगद ने रावण से कहा कि तुम श्रीराम से युद्ध टाल दो। सीता माता को सकुशल लौटा दो, इसी में सभी का कल्याण है। रावण अहंकारी था, उसने अंगद की बातें नहीं मानी। तब अंगद ने रावण से कहा था कि जिन लोगों में 14 बुराइयां होती हैं, उनका जीवन बर्बाद हो जाता है और ऐसे लोगों के जीवन में सुख-शांति और सफलता नहीं होती है।
अंगद ने रावण से कहा कि-
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा।।
सदा रोगबस संतत क्रोधी। बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी।।
तनु पोषक निंदक अघ खानी। जीवत सव सम चौदह प्रानी।।
इसका अर्थ है: वाम मार्गी यानी दुनिया से उलटा चलना, कामी, कंजूस, अत्यंत मूर्ख, अति दरिद्र, बदनाम, बहुत बूढ़ा, नित्य रोगी, हमेशा क्रोध में रहना, भगवान से विमुख, वेद और संतों का विरोध करना, सिर्फ अपना पालन-पोषण करना, निंदा करना और पाप कर्म करना, ये 14 बुराइयां जल्दी से जल्दी छोड़ देनी चाहिए, वर्ना हमारा बर्बाद हो सकता है।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, यदि किसी में इसप्रकार की 14 बुराईयां है तो उसे तुरंत छोड़ने के लिए सत्संग में आना आरंभ कर देना चाहिए। सत्संग को ज्ञानगंगा कहा जाता है। इसमें जो डूबकी लगा लेता है वह इन 14 बुराईयों से दूर हो जाता है।