धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—162

द्रुपद और द्रोणाचार्य की कहानी उनके अहंकार की है। जो दोनों के पतन के कारण भी बनी। द्रुपद और द्रोण एक ही आश्रम में साथ—साथ पढ़ते थे। बचपन में जब दोनों बालक थे तो द्रुपद ने द्रोण से वादा किया की जब वो राजा बन जायेगे तो आधा राज्य उन्हें दे देंगे।

समय अपनी गति से आगे बढ़ चला। एक दिन ऐसा आया जब बालक युवा हुए। द्रोणाचार्य के कारण द्रुपद राजा हो गए। द्रोणाचार्य वादे के मुताबिक वो उनके पास गए और राज्य की कामना की। द्रुपद में अहंकार आ चुका था और यही कारण था उसने द्रोणाचार्य की मदद करना तो दूर उसका ठीक से सत्कार भी नहीं किया। द्रोणाचार्य का सभा में अपमान हुआ। द्रुपद ने कहा कि मित्रता तो बराबर वाले में की जाती है।

बचपन की बात को क्या दिल से लगाना! इसके बाद द्रोणाचार्य अपमान का घूंट पीकर हस्तिनापुर की और बढ़ चले, गंगा पुत्र भीष्म ने उन्हें कौरवों और पांडवों का गुरु बना दिया। जब शिक्षा पूरी हुई तो उन्होनें गुरु दक्षिणा में पांचाल माँगा। सबसे पहले कौरवों ने हमला किया लेकिन वो हार गए। बाद में पांडवों ने हमला किया और द्रुपद को बंदी बनाया गया। द्रोणाचार्य ने उसका कोई अहित नहीं किया, सिर्फ उसे अपने वचन की याद दिलाई और आधा राज्य ले लिया जिसका राजा उन्होंने अपने बलशाली पुत्र अश्वत्थामा को बना दिया।

उसके बाद द्रुपद ने एक ऋषि के कहने पर एक ऐसा पुत्र प्राप्ति हवन किया जो द्रोणाचार्य का वध कर सके और बाद में महाभारत के युद्ध में धृष्टद्युम्नः ने द्रोणाचार्य का वध किया। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, अहंकार में आकर किसी का किया गया अपमान सदा पतन का कारण बनता है। इसलिए गलती से भी किसी का अपमान मत करना। सदा हर किसी का सत्कार करना। समय को बदलते देर नहीं लगती।

Related posts

ओशो:कठोपनिषद

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—371

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—322