धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—165

चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी से दक्षिण की यात्रा पर निकले थे। रास्ते में एक सरोवर के किनारे एक ब्राह्मण को गीता पाठ करते देखा। वह गीता के पाठ में इतना तल्‍लीन था कि उसे अपने शरीर की सुध नहीं थी, उसका हृदय गदगद हो रहा था और नेत्रों से आँसुओं की धारा बह रही थी।

पाठ समाप्त होने पर चैतन्य ने पूछा -“तुम श्लोकों का अशुद्ध उच्चारण कर रहे थे, तुम्हें इसका अर्थ कहाँ मालूम होगा ?” उसने उत्तर दिया -“भगवन्‌! मैं कहाँ जानूँ संस्कृत।” मैं तो जब पढ़ने बैठता हूँ तो ऐसा लगता है कि कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों ओर बड़ी भारी सेना सजी हुई खड़ी है। जहाँ बीच में एक रथ पर भगवान कृष्ण अर्जुन से कुछ कह रहे हैं। उन्हें देखकर रुलाई आ रही है।” चैतन्य महाप्रभु ने कहा- “भैया तुम्ही ने गीता का सच्चा अर्थ जाना है।’” और उसे अपने गले लगा लिया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने शास्त्रों का अध्ययन किया है। आपकी वर्तनी शुद्ध है या अशुद्ध है। आपके भाव ईश्वर को समर्पित है तो आप सबसे बड़े ज्ञानी है, आप सबसे बड़े ध्यानी है। ईश्वर प्रेम, भाव व श्रद्धा के भूखे है ना कि ज्ञान के। इसलिए ईश्वर को जानने की आवश्यकता नहीं। किसी ग्रंथ को रटने की आवश्यकता नहीं। बस! प्रेम, भाव व श्रद्धा से श्रीकृष्ण को समर्पित हो जाएं..आगे वो जाने उसका काम जानें।

Related posts

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—65

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—19

Jeewan Aadhar Editor Desk

Shardiya Navratri 2023 Ashtami Date: कब है महाअष्टमी और महानवमी? जानें सही डेट, कन्या पूजन का मुहूर्त और पूजन विधि