धर्म

ओशो : रेत के महल

छोटे-छोटे बच्चे खिलौनों पर लड़ते है, तुम तो नहीं लड़ते। छोटे-छोटे बच्चे रेत के घर बना लेते हैं नदी तट पर और लड़ते है तुम तो नहीं लड़ते। और सांझ को तुमने देखा हैं छोटे बच्चे भी उन्हीं घरौंदों के लिये बड़े लड़ते है दिन-भर बड़ा झगड़ा मचाये थे,सांझ हो गयी,मां की आवाज आती है कि अब आ जाओ घर, भोजन का समय हुआ, अपने ही बनाये हुए घरों में उछल-कूद कर के, मिट्टी में मिला कर बच्चे घर लौट आते हैं। वे भी पौंढ़ हो गये सांझ होते-होते। दिन -भर लड़ थे इन्हीं घरगूलों के लिये,इन्हीं रेत के महलों के लिए। पार्ट टाइम नौकरी की तलाश है..तो यहां क्लिक करे।
और हमारे महल भी रेत के महल है। कितनी ही चट्टानों से बनाओ,क्योंकि सब चट्टानें रेत हैं,इसलिये सब महल रेत है। चट्टानें है आज,कल रेत हो जायेंगी। जो आज रेत है,कल चट्टानें थीं। यहां कुछ रूकता नहीं,सब बहता चला जाता है। जिसे जीवन की यह प्रतीत होने लगती है,उसके भीतर एक खामोशी…। वह देखता है और हंसता है। कोई गाली दे जाता है तो वह हंस लेता है, चकित होता है। जीवन आधार प्रतियोगिता में भाग ले और जीते नकद उपहार
ऐसा आदमी जो अभी क्रोध से भरा है,अंहकार से भरा है वह बड़े पांखड़ में पड़ गया है। इससे तो अच्छा था गुरू का सत्संग न करता। इससे तो अच्छा था मंदिर न आता। इससे तो अच्छा था माला हाथ में न लेता। माला उसे पवित्र नहीं कर पायी,उसने माला को अपवित्र कर दिया है।
मुंह में राम-राम बगल में छूरी। राम-राम तो सिर्फ बहाना है,छुरी चलाने का अवसर खोज रहा है।
सावधानी रखना ये किसी और के लिये कहे गये वचन नहीं है,ये प्रत्येक मनुष्य के लिये सार्थक वचन हैं संगत वचन है। तुम्हारे लिये तो और भी, क्योंकि तुम संत्सग में जुड़े हो।जीवन आधार न्यूज पोर्टल के पत्रकार बनो और आकर्षक वेतन व अन्य सुविधा के हकदार बनो..ज्यादा जानकारी के लिए यहां क्लिक करे।
और कभी-कभी यह भी हो जाता है कि ऊपर-ऊपर से क्रोध भी नहीं करता आदमी,ऊपर-ऊपर से लीप-पोत कर लेता है और भीतर-भीतर आग जलती है। दूसरों को शायद धोखा हो जाये, मगर अपने को तो कैसे धोखा दे पाओगे? अंगारा जो भीतर तुम्हारे है,तुम्हें पता ही रहेगा। इसलिए प्रत्येक साधक को अपने भीतर निरंतर आत्म-निरीक्षण में लगे रहना चाहिए, देखते रहना चाहिये कि मैं बाहर दिखला रहा हूं वैसा मैं भीतर हूं या नहीं हू? अगर मेरा बाहर और भीतर, अगर मेरा बहिंरग और अंतरंग एक नहीं है,संगीतबद्ध नहीं है,तो मैं पाखड़ी हूं। फिर चाहे मैं दुनिया को धोखा देने में सफल हो जाऊं,पर उसका सार क्या है। परमात्मा को धोखा देने में मैं सफल नहीं हो पाऊंगा। परमात्मा मुझे वैसा ही जान लेगा जैसा मैं अपने आप को जानता हूं,क्योंकि परमात्मा मेरे भीतर मुझ से भी गहरा बैठा हुआ है। शायद बहुत सी बाते मुझे नहीं दिखायी पड़ती अपने भीतर,वे भी परमात्मा के सामने प्रगट है।
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