एक महिला संत ध्यान में बैठी हुई थीं। तभी गांव के कुछ लोग आए और उनसे मिलने की जिद करने लगे। संत के शिष्यों ने लोगों को समझाया कि वे अभी ध्यान में बैठी हैं, उन्हें पुकारेंगे तो उनका ध्यान भंग हो जाएगा। इसीलिए आप कुछ देर बाद उनसे मिलने आना।
लोगों की और शिष्यों की बातें सुनकर संत का ध्यान टूट गया, वह तुरंत बाहर आईं और अशांति का कारण पूछा। गांव के लोगों ने कहा कि एक व्यक्ति बहुत बीमार है, कृपया आप साथ चलें।
महिला संत सब काम छोड़कर तुरंत ही उनके साथ चल दीं और बीमार व्यक्ति की सेवा में लग गईं। उसके लिए जरूरी दवाएं अपने शिष्यों से मंगवाई। कुछ ही दिन में वह व्यक्ति स्वस्थ हो गया। उसके बाद वे पुन: अपने आश्रम लौट आईं। तब शिष्यों ने उनसे पूछा कि आप तो ध्यान में थीं और सब छोड़कर बीमार व्यक्ति की मदद के लिए क्यों चली गईं?
महिला संत ने कहा कि संसार के प्रत्येक प्राणी में ईश्वर का वास है, जब हम जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं, बीमार लोगों की सेवा करते हैं तो ये भगवान की भक्ति का ही एक अंग है। ये पूजा-पाठ से भी बढ़कर तप है। इसीलिए हमें सब काम छोड़कर दूसरों की मदद और सेवा करनी चाहिए। हमें निस्वार्थ भाव से परोपकार करते रहना चाहिए।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हर जीव में ईश्वर निवास करते हैं, इसीलिए सभी जीवों की सेवा करने की बात कही जाती है। जब हम दूसरों की सेवा करते हैं तो ये भगवान की भक्ति ही है। मानव जीवन का ये सार—तुम सेवा से पाओगे पार।