धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—200

रामायण में रावण के भाई कुम्भकरण की भूमिका भी अद्भुत है। कुंभकर्ण रावण का छोटा भाई तथा ऋषि विश्रवा का पुत्र था। कुंभकर्ण की ऊंचाई छह सौ धनुष के बराबर थी। कुंभकर्ण की पत्नी बाली की कन्या वज्रज्वाला थी। इनकी दूसरी पत्नी का नाम कर्कटी था। कुंभकर्ण की तीसरी पत्नी तडित्माला थी। कुंभकर्ण के पिता ऋषि विश्रवा विद्वान थे। उन्होंने कुंभकर्ण को शिक्षा दी थी। इसलिए उसे तमाम वेदों और धर्म-अधर्म की जानकारी थी।

वह भूत और भविष्य का ज्ञाता था। उसके बारे में ये भी कहा जाता है कि वो अच्छे चरित्र और स्वाभाव का राक्षस था। उसके बारे में ये भी माना जाता था कि वो महान लड़ाका था, उसे कोई नहीं हरा पाता था। ये कहा जाता है कि एक दिन के लिए जब वो जगता था तो वो शोध के काम भी करता था।

कुंभकर्ण अपने विशाल शरीर और अपनी भूख से ज्यादा अपनी गहरी नींद के लिए जाना जाता था। माना जाता है कि राक्षस वंश का होने के बावजूद कुम्भकरण बुद्धिमान और बहादुर था। उसकी ताकत से देवराज इंद्र भी ईर्ष्या करते थे।

एक बार रावण, कुम्भकरण और विभीषण एक साथ ब्रह्मदेव की तपस्या कर रहे थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने के लिए कहा। वहीं, दूसरी ओर इंद्र को डर था कि कुम्भकरण वरदान में कहीं स्वर्ग का सिंहासन न मांग लें।

इस बात से डरकर, इंद्र ने मां सरस्वती से कुम्भकरण के वरदान के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। मां सरस्वती ने कुम्भकरण की जीभ बांध दी, जिससे कुम्भकरण के मुख से इंद्रासन की जगह निंद्रासन निकल गया। इससे पहले कि कुम्भकरण को अपनी गलती का अहसास होता, ब्रह्मा तथास्तु बोल चुके थे।

रावण सब कुछ समझ गया था, उसने ब्रह्मा से उनके दिए हुए वरदान को वापस लेने के लिये कहा। ब्रह्मा ने एक शर्त के साथ उस वरदान को वापस लिया कि कुम्भकरण 6 माह सोएगा और 6 माह तक जागता रहेगा।

इस बात को रावण ने मान लिया। कहा जाता है कि जब राम-रावण का युद्ध हो रहा था, तब कुम्भकरण सो रहा था। उसे जगाने की कोशिश की गई, बहुत प्रयास करने के बाद ही वो नींद से जागा था। उसने जागते ही राम सेना में हलचल पैदा कर दी थी। इसके चलते श्रीराम को स्वयं उनसे लड़ने के लिए मैदान में आना पड़ा। श्रीराम को देखते ही कुंभकर्ण ने साफ कर दिया कि वे अब राक्षस योनी से सदा के लिए मुक्त होने जा रहे है। श्रीराम ने कुंभकरण को मुक्ति प्रदान करके उसे सदा के लिए संसारिक यात्रा से विमुक्त कर दिया।

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