धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—224

एक बार धरती पर राक्षसों का अत्याचार बढ़ गया। असुरों की दृष्टि स्वर्ग पर अधिकार जमाने पर टिकी थी। इससे भयभीत होकर स्वर्ग के सभी देव विष्णुजी के पास पहुंचे। उन्होंने धरती और स्वर्ग लोक को राक्षसों से मुक्त करने की गुहार लगाई। विष्णुजी को पता था कि इसका समाधान शिव के पास है।

भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या आरंभ की। वे शिवजी के हजार नाम जपते और हर नाम के साथ एक कमल का फूल चढ़ाते। शिवजी ने विष्णुजी की परीक्षा लेनी चाही। वे विष्णुजी के समक्ष पहुंचे और चुपके से एक कमल का फूल चुरा लिया। विष्णु जी अपनी तपस्या में लीन थे, उन्हें इस बात का पता नहीं चला। जब उन्होंने आखिरी नाम जपा, तो उनके पास कमल का फूल नहीं था। अगर वे फूल नहीं चढ़ाते तो उनकी पूरी तपस्या भंग हो जाती।

विष्णुजी ने तुरंत अपनी एक आंख निकाली और शिवजी को अर्पित कर दी। शिव विष्णुजी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब विष्णुजी ने राक्षसों के संहार के लिए एक अचूक शस्त्र मांगा। शिवजी ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया, जिसका वार कभी खाली नहीं जाता था। इसके बाद विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से अत्यंत खूंखार राक्षसों सो मार गिराया और इस धरती को अधर्मियों के प्रकोप से बचाया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, भगवान सदा संकट उत्पन्न करके भक्त की परीक्षा लेते है। जो उस परीक्षा में खरा उतरता है उसका भवसागर से तरना निश्चित है। विष्णु जी से भी शिव ने परीक्षा लेते हुए उनकी आंख तक ले ली। इसलिए संकट आने पर घबराने की जगह ईश्वर को याद ​कीजिए। उसका नाम जाप कीजिए। ऐसा करने पर ईश्वर स्वयं आपके संकट को दूर करेंगे।

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