धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—237

एक अत्यंत समृद्ध राज्य था। वहां के राजा युवाओं को कभी खाली बैठने ही नहीं देते थे। उनमें आलस्य भरने का कोई अवसर उन्हें देते ही नहीं थे। उस राज्य में सदैव या तो उत्सव की तैयारी हो रही होती थी या तो खेती-बाड़ी की या नहीं तो किसी न किसी प्रकार के मेले की। वहां के राजा युवाओं के स्वास्थ्य और अर्थ यानी धन संपत्ति को लेकर सदैव सख्त रहते थे। उनका मानना था की, युवाओं को सदैव स्वस्थ रहना चाहिए। अपने शरीर की सुरक्षा करनी चाहिए। कोई भी ऐसी आदत या जीवन शैली नहीं अपनानी चाहिए जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो अथवा धन हानि हो। एक बार की बात है खेती का समय समाप्त हो चुका था। राजा ने युवाओं को शारीरिक एवं आर्थिक रूप से सक्रिय रखने के लिए एक प्रतियोगिता रखी।

प्रतियोगिता को तीन वर्ग में बांटा गया। सबसे निचले वर्ग में एक छोटे बछड़े को उठा कर 50 कदम चलने का इनाम 50 स्वर्ण मुद्राएं थीं। वहीं मध्यम वर्ग में थोड़े बड़े बछड़े को उठा कर 50 कदम चलने का इनाम 100 स्वर्ण मुद्राएं। तो उच्च वर्ग में पूर्ण रूप से विकसित भैंस को उठा कर 50 कदम चलने का इनाम ढाई सौ स्वर्ण मुद्राएं थीं। उच्च वर्ग के लिए कोई उम्मीदवार बहुत देर तक आया ही नहीं। इस पर कुछ मंत्रियों ने राजा से कहा, “पूर्ण विकसित भैंस को उठाना असंभव है”। यही विचार विमर्श चल रहा था। तभी एक स्वस्थ मजबूत नौजवान राजा के सामने प्रकट हुआ। उसने राजा से कहा, “हे अन्नदाता! यदि मुझे एक वर्ष का समय दिया जाए तो मैं पूर्ण विकसित भैंस को उठाकर 50 कदम चलकर आपको दिखा सकता हूं।”

राजा नौजवान की यह असंभव बात सुनकर हंस पड़े और उन्होंने कहा, “मैंने दिया तुम्हें एक वर्ष का समय और साथ ही तुम्हारे जीवन यापन के लिए भी हर महीने तुम्हें धन दिया जाएगा। परंतु, यदि 1 वर्ष बाद तुम भैंस को उठाने में असक्षम रहे तब किस दंड के भागी बनोगे?” इस पर नौजवान ने कहा, “हे अन्नदाता! यदि मैं असफल हुआ तो मैं एक वर्ष तक आपका दास बन कर रहूंगा।” राजा ने नौजवान की बात मान ली। एक वर्ष बाद फिर से यही समय आया। नौजवान राजा के सामने प्रकट हुआ। नौजवान को देखने के लिए राज्य में दूर-दूर से लोग आए थे। सब देखना चाहते थे कि, नौजवान पूर्ण विकसित भैंस को उठाकर 50 कदम चलता है या राजा का दास बनता है।

देखते ही देखते नौजवान ने पूर्ण विकसित भैंस को अपने कंधे पर उठा लिया और 50 कदम चलकर पुनः भैंस को जमीन पर रख दिया। यह देखकर हर कोई अचंभित था। राजा ने खड़े होकर नौजवान को प्रोत्साहित किया। उसके लिए तालियां बजाई और इनाम स्वरूप उसे ढाई सौ स्वर्ण मुद्राएं भी दी। फिर राजा ने नौजवान से पूछा, “पुत्र! इस असीम शक्ति का स्रोत तो बताओ”। नौजवान ने कहा, “अन्नदाता! बिना रुके, पूरी लगन के साथ प्रतिदिन किया गया अभ्यास असंभव को संभव बना देता है। यही इस असीम शक्ति का स्रोत है। मैंने छोटे बछड़े को उठाकर 50 कदम चलने से शुरुआत की थी। आज अभ्यास के कारण मैं पूर्ण विकसित भैंस को उठाकर 50 कदम चल पाया।” राजा ने मुस्कुराते हुए अपनी प्रजा से कहा, “अपने इस बंधु से सीखिए लगन और मेहनत से आगे बढ़ना।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, पूरी निष्ठा और लगन से किया गया अभ्यास कभी व्यर्थ नहीं जाता। युवक के रोजाना के अभ्यास ने उसे विजयी बना दिया। इसी प्रकार विद्यार्थियों का नियमित अभ्यास उनको श्रेष्ठ ज्ञान अर्जित करवाता है। व्यापारियों को नियमित अभ्यास बड़ी कामयाबी दिलाता है। भक्त को नियमित अभ्यास ईश्वर से मिलाता है।

Related posts

ओशो :जिज्ञासु का भाव

Jeewan Aadhar Editor Desk

स्वामी राजदास : एक-एक शब्द में हजार अर्थ

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—243