धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—297

एक व्यक्ति अपने क्षेत्र के प्रसिद्ध संत के पास पहुंचा और बोला कि गुरुजी कृपया मुझे कोई ऐसा उपदेश दीजिए, जो मुझे जीवनभर याद रहे। मेरे पास इतना समय नहीं है कि मैं रोज आपके प्रवचन सुनने यहां आऊं।

संत ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा कि ठीक है, मेरे साथ चलो। संत उस व्यक्ति को लेकर श्मशान पहुंच गए। वह व्यक्ति डर गया, उसने पूछा कि गुरुजी आप मुझे यहां लेकर क्यों आए हैं? संत ने जवाब दिया कि हम यहां कुछ देर रुकेंगे। थोड़ी ही देर में एक धनी व्यक्ति की अर्थी वहां आई और उसके कुछ देर बाद एक गरीब व्यक्ति की अर्थी लेकर कुछ लोग वहां पहुंचे। अमीर और गरीब, दोनों लोगों के शवों को श्मशान में जला दिया गया। इसके बाद संत उस व्यक्ति को लेकर अपने आश्रम लौट आए।

संत ने उससे कहा कि तुम कल फिर आना। मैं तुम्हें कल उपदेश दूंगा। अगले फिर वह व्यक्ति संत के पास पहुंच गया। संत उसे लेकर फिर से श्मशान पहुंच गए। संत ने अमीर की चिता से एक मुट्ठी राख उठाई और एक मुट्ठी राख गरीब की चिता से उठाई। दोनों मुट्ठियां दिखाते हुए संत ने कहा कि ये देखो, अमीर हो या गरीब, दोनों एक समान हैं, दोनों में बिल्कुल भी अंत नहीं है।

इसीलिए हमें धन कमाने के लिए कभी भी गलत काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के बाद कोई भी व्यक्ति अपने साथ कुछ भी ले जा नहीं सकता है। संत की बातें सुनकर व्यक्ति की आंखें खुल गईं। उसने संत को धन्यवाद दिया और कहा कि ये बात मैं आजीवन ध्यान रखूंगा, कभी भी गलत काम नहीं करूंगा।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धर्मकर्म, सेवाकर्म और दान—पुण्य ही जीवन के बाद साथ चलता है। संसार का धन—वैभव शरीर के साथ यहीं पर छुट जाता है। इसलिए हमें धर्नजन के साथ—साथ दान देने की प्रवृत्ति भी अपनानी चाहिए। व्यस्त समय में से कुछ समय दीन—दु​:खियों की सेवा में लगाना चाहिए और नियम से धर्मकर्म करना चाहिए। यही सच्ची कमाई है जो मृत्यु के बाद भी साथ जायेगी।

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