धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—265

पुराने समय एक राजा बहुत घमंडी था। जब उसका जन्मदिन आया तो उसने सोचा कि आज मैं किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूरी कर दूंगा। दरबार में भव्य आयोजन हुआ। प्रजा राजा के जन्मोत्सव में पहुंच गई थी। वहां एक संत भी पहुंचे थे।

संत ने राजा को शुभकामनाएं दीं। राजा ने संत से कहा कि आज मैं आपकी सारी इच्छाएं पूरी करना चाहता हूं। आप मुझसे कुछ भी मांग सकते हैं। मैं राजा हूं और मेरे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। संत ने राजा से कहा महाराज मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं ऐसे ही खुश हूं।

राजा ने संत से फिर कहा कि आप इच्छाएं बताएं, मैं उन्हें जरूर पूरी करूंगा। राजा जिद कर रहा था तो संत ने कहा कि ठीक है राजन्, मेरे इस छोटे से बर्तन को सोने के सिक्कों से भर दो।

राजा ने कहा कि ये तो बहुत छोटा काम है। मैं अभी इसे भर देता हूं। राजा ने जैसे ही अपने पास रखे हुए सोने के सिक्के उसमें डाले तो सभी सिक्के गायब हो गए। राजा ये देखकर हैरान हो गया।

राजा ने अपने कोषाध्यक्ष को बुलाकर खजाने से और सोने के सिक्के मंगवाए। राजा जैसे-जैसे उस बर्तन में सिक्के डाल रहा था, वे सब गायब होते जा रहे थे। धीरे-धीरे राजा का खजाना खाली होने लगा, लेकिन वह बर्तन नहीं भरा।

राजा सोचने लगा कि ये कोई जादुई बर्तन है। इसी वजह से ये भर नहीं पा रहा है। राजा ने संत से पूछा कि कृपया इस बर्तन का रहस्य बताइए? ये भर क्यों नहीं रहा है?

संत ने कहा कि महाराज ये बर्तन हमारे मन का प्रतीक है। जिस तरह हमारा मन धन, पद और ज्ञान से कभी भी नहीं भरता है, ठीक उसी तरह ये पात्र भी कभी भर नहीं सकता।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमारे पास चाहे जितना धन आ जाए, हम कितना भी ज्ञान मिल जाए, पूरी दुनिया जीत लें, तब भी मन की कुछ इच्छाएं बाकी रह जाती हैं। हमारा मन इन चीजों से भरने के लिए बना ही नहीं है। जब तक हम भक्ति नहीं करते हैं, तब तक ये खाली ही रहता है। हमारी इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो पाएंगी। इसीलिए जिस स्थिति में हैं, उसी में खुश रहना चाहिए। सुखी जीवन का सूत्र ये है कि संतुष्ट रहें। घमंड न करें और भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए।

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