धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी के प्रवचनों से—288

शिष्य ने गुरु से पूछा कि हमेशा खुश रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए। गुरु ने शिष्य से कहा कि प्रश्न का उत्तर मैं तुम्हें उपवन में घूमते हुए दूंगा। लेकिन इससे पहले एक सूई को पकड़कर मेरे साथ चलना होगा। ध्यान रहे, सूई जैसे एकबार पकड़ी, पूरे रस्ते उसी प्रकार पकड़े रहना है। उसे बदल नहीं सकते। शिष्य ने तुरंत ही आज्ञा मानते हुए सूई को उठा लिया और गुरु के पीछे-पीछे चल दिया।

कुछ दूर चलने के बाद सूई की वजह से शिष्य का हाथ में हरकत होने लगी, लेकिन वह चुपचाप गुरु के पीछे चलता रहा। थोड़ी देर बाद शिष्य का पूरा ध्यान गुरु की बातों से हट गया और पूरा ध्यान सूई पर केंद्रित हो गया, लेकिन उसने गुरु के कुछ नही बोला। सूई लेकर थोड़ी देर और चलने के बाद हाथ में दर्द होना आरम्भ हो गया। शिष्य ने कहा कि गुरुजी अब मैं ये सूई और नहीं उठा सकता। गुरु बोले कि ठीक ये सूई यहीं रख दो।

सूई रखते ही शिष्य को राहत मिली। गुरु ने कहा कि बस यही खुश रहने का मंत्र है। शिष्य बोला कि गुरुजी मैं आपकी बात नहीं समझा।

गुरु ने समझाया कि जब तक हम छोटे—छोटे दुखों का बोझ उठाए रहेंगे, हमें दुख और निराशा का ही सामना करना पड़ेगा। हमेशा खुश रहना चाहते हैं तो दुख देने वाली बातों को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए। दुख के बोझ को जल्दी से जल्दी छोड़ देंगे तो हमेशा खुश रहेंगे। शिष्य को गुरु की बात समझ आ गई।

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