जीवन संघर्ष के लिए बना है। इसके लिए कोई आयु निर्धारित नहीं होती। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आधी रात को मथुरा में कंस की कारागृह में हुआ। कंस ने श्रीकृष्ण की माता देवकी और पिता वासुदेव को कैद कर रखा था। क्योंकि देववाणी थी कि इनकी आठवीं संतान के हाथ से कंस की मौत होनी थी। कंस इससे काफी भयभीत था।
श्रीकृष्ण ने आठवीं संतान के रुप में जन्म लिया। उनके जीवन को सुरक्षित करने के लिए रात को ही पिता वासुदेव जेल से चोरी—छिपे निकलकर पैदल ही गोकुल के लिए निकले। रस्ते में उफनती हुई यमुना नदी को पार करके गोकुल में अपने मित्र नंदबाबा के घर पहुंचे। नंदबाबा और यशोदा को श्रीकृष्ण सौंपकर उनकी पुत्री महामाया को लेकर वापिस लौट आएं।
प्रेमी सुंदरसाथ जी, श्रीकृष्ण की इस लीला से संदेश मिलता है कि जीवन में संघर्ष का कोई समय तय नहीं होता। संघर्ष जन्म के साथ ही आरंभ हो जाता है। बच्चे के जन्म के साथ ही पहला संघर्ष स्वयं को जीवित रखने का होता है। श्रीकृष्ण भगवान के रुप में धरा पर आएं थे, लेकिन उनके जन्म लेने के तुरंत बाद ही संघर्ष आरंभ हो गया था।
इसलिए धर्मप्रेमी सज्जनों! संघर्ष से डरें नहीं, घबराएं नहीं। जीवन में संघर्ष की राह पर चलते हुए श्रीकृष्ण ने जन्म के तुंरत बाद अपने माता—पिता का त्याग कर दिया था, इसीप्रकार हमें भी जीवन में बहुत कुछ त्याग करना पड़ता है। त्याग और संघर्ष के लिए हर पल स्वयं को तैयार रखें। संघर्ष और त्याग के बाद जो व्यक्तित्व में निखार आता है वह आपको सदियों तक प्रकाशमान रखता है।
आधुनिक समय में महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, सुभाष चंद्र बोस, भगतसिंह जैसे नेता त्याग और संघर्ष के बल पर ही हमारे बीच न होते हुए भी समाज के मार्गदर्शक बने हुए है। गौतम बुद्ध, महावीर जैन, गुरु नानक देव, देवचंद्र महाराज, महामति प्राणनाथ जैसे अनेक सिद्धपुरुष संघर्ष और त्याग के बल पर ही सदियों से हमें सद् मार्ग दिखा रहे हैं। इसलिए अपने जीवन में संघर्ष और त्याग को सहर्ष स्वीकार करें।