धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—293

एक राजा का अंगूर का बाग था। उसमें बहुत सारे अंगूर लगे हुए थे। बाग की देखभाल करने वाला माली रोज अंगूर तोड़कर राजा के लिए ले जाता था। एक दिन बाग में एक चिड़िया आई, उनसे अंगूर खाना शुरू कर दिए।

चिड़िया मीठे अंगूर को खा लेती थी और खट्टे अंगूर नीचे गिरा देती थी। माली ने पहले दिन तो ध्यान नहीं दिया। अगले दिन वह चिड़िया फिर आ गई और उसने अंगूर खाना शुरू कर दिए। इसके बाद वह चिड़िया रोज आने लगी। अब माली उससे परेशान होने लगा।

माली ने चिड़िया को भगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली। अंत में हारकर माली अपने राजा के पहुंच गया और राजा को पूरी बात बता दी।

राजा ने माली से कहा कि वे खुद उस चिड़िया को पकड़ेंगे। अगले दिन राजा अंगूरों की बेल के पीछे छिप गए। रोज की तरह चिड़िया जैसे ही आई राजा ने उसे झपटकर पकड़ लिया। चिड़िया ने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली।

चिड़िया ने राजा से कहा कि अगर आप मुझे छोड़ देंगे तो मैं आपको ज्ञान की चार बातें बताऊंगी।

बोलने वाली चिड़िया देखकर राजा हैरान थे। उन्होंने उससे कहा कि पहले तुम चार बातें बताओ, उसके बाद मैं सोचूंगा, तुम्हें छोड़ना है या नहीं। चिड़िया ने पहली बात बताई कि कभी भी हाथ आए शत्रु को छोड़ना नहीं चाहिए। दूसरी बात, कभी भी किसी असंभव बात पर यकीन मत करो। तीसरी बात, बीती बात पर पछतावा मत करो। तीन बात कहने के बाद चिड़िया ने राजा से कहा कि आपके हाथों में फंस गई हूं। कृपया अपनी पकड़ छोटी ढीली करें।

राजा ने जैसे ही पकड़ ढीली की, चिड़ियां मौका पाते ही उड़कर ऊपर पेड़ पर जाकर बैठ गई। ये देखकर राजा खुद को ठगा सा महसूस करने लगा। चिड़िया ने कहा कि राजन चौथी बात ये है कि अच्छी बातें सुनने से कोई लाभ नहीं मिलता है, अच्छी बातों को जीवन में उतारना भी पड़ता है। मैंने तुम्हें जो बातें बताईं, तुमने उन्हें जीवन में उतारा ही नहीं। तुमने मुझे यानी शत्रु को छोड़ दिया, मेरी असंभव जैसी बातों पर भरोसा किया और मुझे छोड़ने के बाद पछता भी रहे हो।

राजा को चिड़िया की बातें समझ आ गई और उसने संकल्प लिया कि अब से वह इन बातों को जीवन में उतारेगा। धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सिर्फ ज्ञान हासिल करने से जीवन सफल नहीं होता, ज्ञान को जीवन में उतारना भी पड़ता है।

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