धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से- 337

एक संत सुबह-सुबह समुद्र किनारे टहल रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति महिला की गोद में सिर रखकर सोया हुआ है और पास ही मदिरा की बोतल रखी है। संत ने देखकर सोचा कि ये कितने अधर्मी लोग हैं। सुबह-सुबह मदिरा सेवन करके ऐसी अवस्था में बैठे हैं। इन्हें इतना भी ध्यान नहीं है कि ये एक सार्वजनिक जगह है। ऐसा सोचते हुए संत आगे निकल गए।

कुछ ही दूर चलने पर उन्होंने देखा कि समुद्र में एक व्यक्ति डूब रहा है। संत उसकी मदद करना चाहते थे, लेकिन उन्हें तैरना नहीं आता था। इस कारण किनारे पर ही खड़े थे। तभी जो व्यक्ति महिला की गोद में सिर रखकर सोया था, वह उठा और समुद्र में जाकर डूबते हुए व्यक्ति के प्राण बचा लिए।

संत फिर सोच में पड़ गए कि मैं इस व्यक्ति को क्या बोलूं। इसने तो एक व्यक्ति के प्राण बचाकर धर्म का बड़ा काम किया है। वे तुरंत ही उस व्यक्ति के पास गए और उससे पूछा कि भाई तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो?

व्यक्ति ने जवाब दिया कि महाराज मैं एक मछवारा हूं। कई दिनों से समुद्र में मछली पकड़ रहा था, आज सुबह ही किनारे पर लौटा हूं। महिला की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये मेरी मां हैं और मुझे लेने के लिए यहां आई हैं। घर में कोई बर्तन नहीं था तो मदिरा की बोतल में पानी भरकर ले आई। लंबी यात्रा के कारण मैं बहुत थक गया था। इसीलिए किनारे पर मां की गोद में सिर रखकर सो रहा था।

ये बातें सुनते ही संत की आंखों में आंसू आ गए। संत सोचने लगे कि मेरी सोच कितनी गलत है। मैंने जैसा देखा उसे सच मानकर गलत बातें सोच रहा था। जबकि वास्तविकता तो एकदम अलग है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, कोई भी बात जैसी हम देखते हैं, हमेशा जैसी दिखती है, वैसी नहीं होती है, उसका एक दूसरा पहलू भी हो सकता है। इसीलिए किसी बात पर कोई धारणा बनाने से पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए। सारे पहलुओं पर विचार करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए। वरना बाद में पछताना पड़ता है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk