धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 665

एक छोटे से गाँव में रामदास नाम का युवक रहता था। वह मेहनती था, लेकिन हर काम शुरू करने से पहले ही मन में नकारात्मक विचार लाता—“मुझसे यह नहीं होगा… लोग हँसेंगे… मैं हार जाऊँगा।” यही सोच उसकी हार का कारण बनती।

एक दिन गाँव में एक संत आए। लोग उनसे मिलने गए, रामदास भी गया। उसने संत से कहा— “गुरुदेव! मैं मेहनत तो करता हूँ, लेकिन मुझे कभी सफलता नहीं मिलती। हर बार असफल हो जाता हूँ।”

संत मुस्कराए और बोले— “बेटा, असफलता तुम्हारे कर्म से कम और सोच से ज्यादा जुड़ी है। तुम्हारी सोच नकारात्मक है, इसलिए परिणाम भी वैसे ही आते हैं। अगर मन में पहले से हार मान ली, तो जीत कहाँ से आएगी?”

रामदास ने पूछा— “तो फिर मुझे क्या करना चाहिए?”

संत ने उसे एक बीज दिया और कहा— “इसे बोओ और रोज़ यह सोचो कि इससे एक बड़ा, फलदार पेड़ बनेगा। जैसे ही मन में शंका आए कि बीज सूख जाएगा, तुरंत अपने आप से कहो—‘नहीं, यह पेड़ ज़रूर बनेगा।’ देखना क्या होता है।”

रामदास ने वैसा ही किया। रोज़ बीज वाले स्थान पर जाता और मन ही मन सकारात्मक वाक्य बोलता—“यह पेड़ ज़रूर फलेगा।” धीरे-धीरे पौधा उगा, हरा-भरा हुआ और कुछ वर्षों में सचमुच बड़ा पेड़ बन गया।

रामदास फिर संत के पास गया और बोला— “गुरुदेव! आपकी बात सच निकली। मेरी सोच बदली तो परिणाम भी बदल गए।”

संत ने समझाया— “बेटा, यही जीवन का नियम है। सकारात्मक सोच मन को बल देती है, आत्मविश्वास जगाती है और हमें हार से लड़ने की शक्ति देती है। नकारात्मक सोच हार से पहले ही गिरा देती है। जिस तरह पेड़ को पानी चाहिए, वैसे ही सफलता को सकारात्मक सोच चाहिए।”

उस दिन के बाद रामदास ने अपने हर काम में सकारात्मक सोच अपनाई। धीरे-धीरे वह सफल होने लगा और गाँव के लोग उसे “जीत का प्रतीक” कहने लगे।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सकारात्मक सोच कठिन परिस्थितियों को आसान बना देती है। नकारात्मक सोच से पहले ही हार मिलती है। जीतने के लिए मन को जीतना जरूरी है।

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