एक राजा के पास सुंदर बकरा था। वह उसे बहुत प्रिय था। एक दिन राजा ने घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति उसके बकरे को घास खिलाकर तृप्त करेगा, उसे हजार स्वर्ण मुद्राएं उपहार में दी जाएंगी। बकरा तृप्त हुआ या नहीं, इसकी परीक्षा राजा स्वयं करेंगे।
घोषणा के बाद राज्य के काफी लोग सोच रहे थे कि ये कौन सा बड़ा काम है। इसे तो कोई भी कर देगा। ये सोचकर बड़ी संख्या में लोग राज महल पहुंच गए। लोगों ने बारी-बारी से बकरे को घास खिलाकर तृप्त करने की कोशिश की, लेकिन बकरा जैसे ही राजा के पास जाता तो राजा उसके सामने घास रख देते, बकरा वह घास खाने लगता। काफी लोग इस काम में असफल हो गए। सभी लोग ये मान चुके थे कि इस समस्या प्रतियोगिता को कोई जीत नहीं सकता।
उसी राज्य में एक बुढ़ा बहुत बुद्धिमान था। वह भी राज महल पहुंच गया। उसने बकरे को अपने साथ लिया और जंगल ले गया। पहले तो उसने बकरे को पेटभर घास खिला दी। इसके बाद बकरा जैसे ही घास खाने की कोशिश करता तो बूढ़ा उसे डंडे से मारने लगता। ऐसा ही करते-करते सुबह से शाम हो गई। बकरा ये समझ गया कि अगर मैंने घास खाने की कोशिश की तो मुझे मार पड़ेगी।
शाम को बूढ़ा बकरे को लेकर राजा के पास गया। राजा ने तुरंत ही बकरे के सामने घास रख दी। बकरे ने सोचा कि अगर घास खाई तो मार पड़ेगी। ये सोचकर उसने घास की तरफ देखा तक नहीं। राजा भी हैरान थे कि ये कैसे संभव हो गया, लेकिन शर्त के मुताबिक उस बूढ़े को हजार स्वर्ण मुद्राएं उपहार में दे दी गईं।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, हमारे जीवन में समस्या कोई भी हो, उसका हल जरूर है। बस जरूरत है थोड़ा अलग सोचने की। इस कथा में बुद्धिमान बूढ़े ने थोड़ा अलग सोचा और बकरे को तृप्त करने की प्रतियोगिता जीत ली। इसी तरह किसी भी समस्या में धैर्य से काम लेना चाहिए और थोड़ा अलग सोचने से कोई न कोई रास्ता जरूर मिल जाता है।