एक सिंहनी छलांग लगाती थी एक पहाड़ी से। गर्भवती थी, बीच में ही बच्चा हो गया। वह बच्चा नीचे गिर गया। नीचे से भेड़ो कस एक झुंड निकल रहा था, वह बच्चा भेड़ो के साथ हो लिया। उसने बचपन से ही अपने को भेड़ो के बीच पाया, उसने अपने को भेड़ ही जाना। और तो जानने का उपाय क्या था?
इसी तरह तो तुमने अपने को हिन्दू जाना है, मुसलमान जाना है, जैन जाना है। और तुम्हारे जानने का उपाय क्या हैं? जिन भेड़ो के बीच पड़ गए, वही तुमने अपने को जान लिया हैै। इसी तरह तुम गीता पकड़े हो, कुरान पकड़े हो, बाइबल पकड़े हो। जिन भेड़ो ने भी उसे अपने बीच स्वीकार कर लिया। उन्ही के बीच बड़ा हुआ। उन्हें कभी उससे से भय भी नहीं लगा। कोई कारण भी नहीं था भय का। वह सिंह शाहकारी रहा। जिनके साथ था, भेंड़े भागतीं तो वह भी भागता। स्कूली प्रतियोगिता.. प्ले ग्रुप से दसवीं तक विद्यार्थी और स्कूल दोनों जीतेंगे सैंकड़ों उपहार.. अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करे
एक दिन ऐसा हुआ कि एक सिंह ने भेड़ो के इस झुंड पर हमला किया। वह सिंह तो चौंक गया। वह यह देख कर चकित रह गया कि यह हो क्या रहा है। उसे अपनी आंखो पर भरोसा न आया। सिंह भाग रहा है भेड़ो के बीच में। और भेड़ों को उससे भय भी नहीं है, घसर-पसर उसके साथ भागी जा रही हैं। और सिंह क्यों भाग रहा है।? उस बूढ़े को तो कुछ समझ में नहीं आया। उसका तो जिंदगी- भर का सारा ज्ञान गड़बड़ा गया। उसने कहा, यह हुआ क्या? ऐसा तो न देखा न सुना। न कानों सुना, न आंखो देखा। उसने पीछा किया। और भेड़े तो और भागीं। और भेड़ों के बीच में जो सिंह छिपा था, वह भी भागा। और बड़ा मिमियाना मचा और बड़ी घबड़ाहट फैली। मगर उस बूढ़े सिंह ने आखिर उस जवान सिंह को पकड़ ही लिया। वह तो मिमियाने लगा, रोने लगा, कहने लगा, छोड़ दो, मुझे छोड़ दो, मुझे जाने दो। मेरे सब संगी-साथी जा रहे हैं, मुझे जाने दो।
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्रमगर बूढ़े सिंह उसे घसीट कर उसे नदी के किनारे ले गया। उसने कहा, मूरख तू पहले पानी में अपना चेहरा देख। मेरा चेहरा देख और पानी में अपना चेहरा देख हम दोनों के चेहरे पानी में देख। जैसे ही घबड़ाते हुए, रोते हुए… आंखे आंसुओं से भरी हुई थी, और मिमिया रहा है, लेकिन अब मजबूरी थी, अब यह सिंह दबा रहा है तो देखना पड़ा… उसने देखा बस देखते ही एक हुकर निकल गई। एक क्षण में सब बदल गया।एक क्षण में क्रांति हो गई। भेड़ गई। सिंह जो था, वही सो गया। नौकरी करना चाहते है, तो यहां क्लिक करे।
ऐसे ही तुम हो। तुम्हें भूल ही गया है तुम कौन हो। तुमने दोस्ती बगूलों से बना ली है। तुमने दोस्ती झूठ से कर ली है। तुमने झूठ से खूब घर बना लिया हैं। और झूृठ के घर जब तक तुम्हें घर मालूम होते हैं असली घर की तालाश नहीं हो सकती।
तब फिर एक दूसरे ही जगत में तुम्हारा प्रवेश होगा- हंसो का समालज, सिद्धों का समाज। उसका नाम ही मोक्ष है। लेकिन सारी बात का सारसूत्र है- मौन प्रेम।
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