एक समय की बात है। किसी नगर में एक दरिद्र व्यक्ति रहा करता था। वह नगर के समीप वन में एक टूटी कुटिया में दिन काट रहा था। अपने जीवनयापन के लिए वह भिक्षावृत्ति किया करता था। वह व्यक्ति संतोषी और धार्मिक था। भिक्षा वह अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए ही मांगता था। यदि किसी दिन उसे अधिक भिक्षा मिल जाती, तो वह उसे एक पोटली में बांध देता और एक खूंटी से टांग देता था। जितने दिन उस अतिरिक्त भिक्षा से उसका काम चल जाता, उतने दिन वह भगवान के पूजा-ध्यान में अपना समय व्यतीत करता था।
इधर कुछ समय से वह देख रहा था कि उसकी भिक्षा की पोटली कोई खाली कर दे रहा था। वह जब भी अतिरिक्त भिक्षा का उपयोग करने पोटली उतारता, वह उसे खाली ही मिलती थी। इस बात से वह व्यक्ति काफी परेशान हो गया। पोटली खाली होने की स्थिति में उसे रोज ही भिक्षा मांगने जाना पड़ता था, जिससे वह पूजा-ध्यान नियमित रूप से नहीं कर पा रहा था। एक दिन उसने तय किया कि आज रातभर जाग कर देखा जाए कि चोर है कौन? उस रात वह पूरे यत्न से नींद भगाकर लेटा रहा। मध्यरात्रि में उसने देखा कि एक मोटा चूहा बिल से निकला और उसकी पोटली में रखा सामान उठाकर ले गया।
दूसरे दिन से उस व्यक्ति ने पोटली और ऊंचे स्थान पर लटकाना शुरू कर दी, पर आश्चर्य की बात यह थी कि चूहा अभी भी पोटली खाली करता जाता था। वह व्यक्ति पोटली टांगने की ऊंचाई जितनी भी बढ़ा देता, चूहा कूद कर पोटली तक पहुंच ही जाता। वह चूहे को डराने के जितने प्रयास करता, चूहा उन सबको धता बता देता। वह व्यक्ति इस बात से इतना परेशान हो गया कि पूजा- पाठ भूल गया। उसका मन पूरे समय उस चूहे में ही लगा रहता। व्यक्ति अपनी समस्या लेकर संत के पास पहुंचा एक दिन उस नगर में एक संत पधारे। वह व्यक्ति भी अपनी समस्या लेकर उन संत के पास पहुंचा। उससे सारी बात जानकर संत ने कहा कि वत्स! एक चूहे में इतना बल होना सामान्य बात नहीं है। इतनी शक्ति उसी के पास हो सकती है, जिसके पास अपार धन हो। धन की शक्ति अनंत होती है, वह किसी को भी उद्दंड बना सकता है। तुम एक काम करो, तुरंत ही उस चूहे का बिल खोदकर देखो। शायद तुम्हारी समस्या हल हो जाए।
संत की बात सुनकर वह व्यक्ति तुरंत अपनी कुटिया में गया और कुदाल लेकर चूहे का बिल खोदने में जुट गया। काफी देर खोदने के बाद उसे बिल में से सोने के गहने, रत्न आदि मिलने लगे। इसका कारण यह था कि वह चूहा हर जगह से सामान उठा कर अपने बिल में जमा करने का आदी था। अपना संग्रह देखकर उस चूहे को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। वह किसी से ना डरता और सामान उठाने से बाज ना आता। आज उसकी इसी उद्दंडता का फल सामने आया कि उसका बिल ही टूट गया।
इधर, इतना धन पाकर वह आदमी घबरा गया और सब सामान लेकर संत के पास पहुंचा। संत ने उससे पूछा कि इस धन को देखकर तुम्हें लोभ नहीं आया? उस व्यक्ति ने कहा कि जो धन एक चूहे का दिमाग खराब कर सकता है, वह मेरा क्या हाल करेगा? मुझे जीवन में संतोष और प्रभु स्मरण ही चाहिए। संत ने वह सब धन नगर के राजा के पास रखवा दिया और उस व्यक्ति को अपना शिष्य बनाकर साथ रख लिया।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, धन जब तक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लायक होता है, वह व्यक्ति का सहायक होता है। जैसे ही धन अपार होने लगता है, उसका नशा व्यक्ति के दिमाग पर चढ़ जाता है और वह किसी को कुछ नहीं समझता। यही स्थिति विनाश को आमंत्रण देती है। इसीलिए धन कमाएं, पर उसे खुद पर हावी ना होने दें।