धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज—121

पाँच हज़ार साल पहले कालिया नाग की बात रूपक में रखी थी, उस कालिया नाग को वश में करने वाले, वे कृष्ण नहीं थे। इंसान चिढ़ता है, गुस्सा होता है, वही नाग है। कालिया नाग में तो मदारी का काम था, उसमें कृष्ण भगवान का क्या काम था? और कृष्ण भगवान को नाग को वश में करने की क्या ज़रूरत आ पड़ी थी? क्या उन्हें मदारी नहीं मिल रहे थे? लेकिन बात को कोई समझता ही नहीं और वह रूपक अभी तक चल रहा है। जहाँ कालियादमन हुआ, वहाँ पर कृष्ण हैं। इस कालियादमन में नाग मतलब क्रोध, तो जब क्रोध को वश कर ले, तब कृष्ण बना जा सकता है। जो कर्मों को कृष करे, वही कृष्ण!

कृष्ण भगवान ने नियाणां (अपना सारा पुण्य लगाकर किसी एक चीज़ की कामना करना) किया था। नियाणां मतलब क्या? अपनी चीज़ के बदले में किसी और चीज़ की इच्छा करना, चीज़ के सामने चीज़ की इच्छा करना। खुद के पुण्यों की सारी ही जमापूँजी किसी एक चीज़ प्राप्त करने में खर्च कर देना, उसे नियाणां कहते हैं। कृष्ण भगवान पिछले जन्म में वणिक थे, तब उन्हें जहाँ-तहाँ से तिरस्कार ही मिला था, फिर साधु बने थे। उन्होंने तप-त्याग का ज़बरदस्त आचार लिया, उसके बदले में क्या निश्चित किया? मोक्ष की इच्छा या दूसरी इच्छा? उनकी ऐसी इच्छा थी कि पूरा जगत् मुझे पूजे। तो उनका पुण्य इस पूजे जाने के नियाणे में खर्च हो गया, तो आज उनके नियाणे के पाँच हज़ार साल पूरे हो रहे हैं।

जगत् भौतिक में जागता है, वहाँ श्री कृष्ण सोते हैं और जगत् सोता है, वहाँ श्री कृष्ण भगवान जागते हैं। अंत में अध्यात्म की जागृति में आना पड़ेगा। संसारी जागृति वह अहंकारी जागृति है और निर्अहंकारी जागृति से मोक्ष है।

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