महाभारत का युद्ध के बाद का प्रसंग है। युद्ध खत्म हो चुका था। जीत के बाद युधिष्ठिर राजा बनने वाले थे। उस समय श्रीकृष्ण ने तय किया कि अब मुझे द्वारिका लौटना चाहिए, क्योंकि यहां सब ठीक हो गया है।
श्रीकृष्ण की इच्छा जानकर कुंती ने भगवान को रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन श्रीकृष्ण कुंती को समझा दिया कि उनका जाना जरूरी है।
श्रीकृष्ण से युधिष्ठिर ने कहा कि मैं आपसे विशेष अनुरोध करता हूं कि आप अभी न जाएं, मैं बहुत परेशान हूं।
श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम इतना बड़ा युद्ध जीत चुके हो, राजा बन गए हो तो अब क्या परेशानी है?
युधिष्ठिर ने कहा कि आप तो जानते ही हैं, मुझे ये जीत अपने ही लोगों को मारकर मिली है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि ये जीत इतना दुख देगी। ये सत्ता अच्छी नहीं लग रही है।
श्रीकृष्ण ने कहा कि राजा बनना तो मुश्किल ही है। आपको धर्म बचाना था और उसके बाद आपको ये राजगादी मिलनी थी। हमारी हर जीत के पीछे एक हार छिपी होती है। बड़ी सफलता के साथ ही नई परेशानियां भी आती हैं, इसलिए असफलता और परेशानियों से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए, तभी जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। समझदार व्यक्ति वही है जो जीत के पीछे के दुख से सीख लेकर आगे बढ़ता है।
जो लोग सफलता को समझे बिना जीत का आनंद लेते हैं, उनकी स्थिति तो हारे हुए लोगों की तरह हो जाती है। इसलिए सफलता और परेशानियों से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सलाह दी की हमें भीष्म पितामह के पास चलना चाहिए, वे ही तुम्हें और अच्छी तरह से समझा सकते हैं कि राज धर्म कैसे निभाना चाहिए। इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा कि सफल व्यक्ति को बीते हुए कल पर समय बर्वाद नहीं करना चाहिए बल्कि बीते हुए कल की गलतियों को आज ठीक कैसे करना है इस पर विचार करके दिन—रात मेहनत करनी चाहिए। जो बीते हुए कल की सोच करता है वह वर्तमान के लिए लापरवाह बन जाता है और भविष्य को भी खराब कर देता है। इसलिए सफलता के बाद कभी भी लापरवाह मत बनों।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जो लोग सफल होने के बाद लापरवाह नहीं होते हैं और परेशानियों से सीख लेकर आगे बढ़ते हैं, उनके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। जो लोग ये बातें ध्यान नहीं रखते हैं, उनका मन हमेशा अशांत ही रहती है।