धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से-390

प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक राजा रहता था। वह बहुत ही दयालु और परोपकारी था। एक दिन रात में सोते समय राजा ने सपना देखा। सपने में राजा से एक परोपकारी साधु कह रहा था कि राजन कल रात तुम्हें एक विषैला सर्प काटेगा जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। साधु ने राजा को यह भी बता दिया की सांप कहा से आएगा और वह कहां रहता है। साधु के अनुसार सर्प अपने पूर्वजन्म की शत्रुता का बदला लेना चाह रहा है।

जब राजा सुबह सोकर उठे तो उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता होने लगी। वे अपनी आत्मरक्षा को लेकर उपाय सोचने लगे। जिसको लेकर उन्होंने कई तरीके सोचे। अंत में राजा ने निर्णय लिया कि वे अपने मधुर व्यवहार से सभी शत्रु का दिल जीतने का काम करेंगे। राजा को पता है कि दुनिया में प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं है, इसलिए उन्होंने सांप के साथ मधुर व्यवहार करके उसके मन को बदलने का विचार किया।

शाम से पहले राजा ने सांप के निवास स्थान पेड़ से लेकर अपने शयनकक्ष तक के रास्ते में सुगंधित फूलों, इत्र का झिड़काव और जगह-जगह मीठे दूध के कटोरे रखवा दिये। इसके अलावा सैनिकों को आदेश दिया गया कि सर्प को किसी भी तरह का कष्ट नहीं होना चाहिए।

जैसे ही शाम खत्म हुई और रात की शुरुआत हुई वैसे ही सांप अपने बांबी से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया स्वागत की व्यवस्था देखकर वह खुश होता चला गया। फूलों पर लेटते हुए और मीठे दूध का सेवन करके आगे बढ़ता गया। इस तरह से उसके अंदर क्रोध के स्थान पर दया का भाव जागृत होने लगा। राजमहल पहुंचकर सांप ने देखा कि प्रवेश द्वार पर द्वारपालों ने उसको कोई हानि नहीं पहुंचाई। इस घटना को देखकर सर्प के मन में स्नेह उमड़ आया।

सांप के व्यवहार में नम्रता, दया का आगमन हो गया था। अब उसके लिए राजा को काटना असंभव हो गया। उसने सोचा कि जो अपने शत्रु के साथ इतना अच्छा व्यवहार कर रहा है उसको मैं कैसै कांटू? राजा के पंलग के पास पहुंचते-पहुंचते उसका विचार परिवर्तित हो गया। सांप ने राजा से कहा कि मैं आपसे बदला लेने आया था लेकिन आपके आदर सत्कार ने मेरे बदले की भावना को परास्त कर दिया। अब मैं आपका शत्रु नहीं मित्र हूं। सर्प ने उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि राजा को दे दिया। अतः व्यक्ति आदर और सम्मान के व्यवहार से सब कुछ पा सकता है।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, आपका व्यवहार और शब्द ही आपके मित्र और शत्रु बनाते है। इसलिए सदा अपने व्यवहार और शब्दों पर सदा ध्यान देना चाहिए।

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