धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—492

एक गांव में तीन चोर रहते थे। एक रात उन्होंने एक धनी आदमी के यहां चोरी की। उन्होंने सारा धन एक थैले में भरा और उसे लेकर जंगल की ओर भाग निकले। जंगल में पहुंचने पर उन्हें जोर की भूख लगी। वहां खाने को तो कुछ था नहीं, इसलिए उनमें से एक चोर पास के एक गांव से खाना लेने गया। बाकी के दोनों चोर जंगल में चोरी के माल की रखवाली कर रहे थे।

जो चोर खाना लेने गया था, उसकी नीयत खराब थी। पहले उसने होटल में खुद भोजन किया। फिर उसने अपने साथियों के लिए खाना खरीद कर उसमें तेज जहर मिला दिया। उसने सोचा कि जहरीला खाना खाकर उसके दोनों साथी मर जाएंगे तो सारा धन उसका हो जाएगा। जंगल में दोनों चोरों ने खाना लेने गए अपने साथी चोर की हत्या करने की योजना बना ली थी। वे उसे अपने रास्ते से हटाकर सारा धन आपस में बांट लेना चाहते थे।

तीनों चोरों ने अपनी-अपनी योजनाओं के अनुसार कार्य किया। पहला चोर जैसे ही जहरीला भोजन लेकर जंगल में पहुंचा। उसके दोनों साथी उस पर टूट पड़े। उन्होंने उसका काम तमाम कर दिया फिर वे निश्चिंत होकर भोजन करने बैठ गए। मगर जहरीला भोजन खाते ही वे दोनों भी तड़प-तड़प कर मर गए। इस प्रकार तीनों का अंत भी बुरा ही हुआ।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, बुराई का अंत बुरा ही होता है। चोरी, लूट और बेइमानी का धन एक बार आपको समाज की नजरों में ऊँचा उठा सकता है..लेकिन ये आपका सुख—चैन, शांति और स्नेह सब कुछ छीन लेगा और वक्त आने पर यह आपका सर्वनाश कर देगा। इसलिए सदा ईमानदार रहो। ईमानदारी से धन आने में वक्त लग सकता है लेकिन वह धन आपके पास सुख—शांति और स्नेह लेकर आयेगा।

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