धर्म

परम​हंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—399

एक समय की बात है, जब एक राजा अपने राज्य में सुंदर सरोवर की बड़ी देखभाल करते थे। उनके सरोवर में बहुत सुंदर कमल के पुष्प खिले हुए थे और सरोवर के किनारे फलदार वृक्षों ने अपने फलों से संजीव किया था। इस जलाशय में बहुत सी रंगीन मछलियाँ खेलती थीं और वहां का जलविहार सभी को मोहित कर देता था। राजा ने अपने आदेश के अनुसार सभी को सख्ती से चेतावनी दी कि सरोवर से कोई मछली पकड़ना मना है, ताकि सरोवर की सुंदरता और प्राकृतिक जीवन का संरक्षण हो सके। एक सुचना पट्ट पर चेतावनी लिखी गई थी जो सभी को यह बताती थी कि यह आदेश सख्ती से पालन किया जाएगा।

इसी समय, राजा के राज्य में एक चोर था, जो साधु के छद्म वेष में चोरी करता था। वह साधु के परिधानों को अपने साथ रखता था ताकि अगर कभी उसे पकड़ा जाता तो वह साधु बनकर बच सके। एक दिन, चोर को कोई चोरी में सफलता नहीं मिली, और उसने निराश होकर सरोवर के किनारे बैठ गया। उसकी नजर सुचना पट्ट पर पड़ी और उसने देखा कि सरोवर से मछलियाँ पकड़ने का आदेश है। डर के बावजूद, चोर ने तालाब में जाकर मछलियाँ पकड़ने का प्रयास किया।

लेकिन तभी चोर ने देखा राजा निकट आ रहे है। चोर मन ही मन डर रहा था कि पता नहीं राजा क्या दंड दे दे। फिर भी वह साहस करके पेड़ के नीचे ध्यान में बैठ गया। राजा साधु के पास आया और उसे प्रणाम किया। साधु के तरफ से प्रति उत्तर न सुनकर, राजा को लगा कि कोई बहुत पहुंचे हुए महात्मा है और दीर्घ काल से ध्यान में हैं। इन्हें अभी ध्यान से जगाना ठीक नहीं कभी फिर इनसे मिलेंगे। राजा साधु के सामने बहुत सारे हीरे जवाहरात उपहार स्वरुप रख कर चला गया।

राजा के जाने के बाद, चोर ने आँखें खोलीं और उपहारों को देखकर वह हैरान रह गया। उसने समझा कि साधु बनने के लिए उसे इतने शानदार उपहार मिल रहे हैं, तो अगर वह सच्चे साधु बन जाए तो कितना अच्छा होगा। इस सोच के कारण, उसने चोरी करना छोड़ दिया और सत्कर्म का मार्ग अपनाया। और धीरे—धीरे उसका मोह—माया से मन उठने लगा। उसने घर—परिवार सब छोड़ दिया और तप करते—करते सच में एक बड़े पहुंचे हुए संयासी साधु बन गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मन हो या ना सत्संग, पूजा—पाठ और सतमार्ग पर निरतंर चलने का प्रयास करना चाहिए। निरंतरता के चलते एक दिन आपका मन अवश्य ही सत्संग, पूजा—पाठ और सतमार्ग में लगने लगेगा।

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