धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से — 413

एक बच्चा पालतू जानवरों की दुकान में एक पिल्ला खरीदने गया। वहाँ चार पिल्ले साथ बैठे थे, जिनमें से हर एक की कीमत 500 रुपए थी। एक पिल्ला कोने में अकेला बैठा हुआ था। उस बच्चे ने जानना चाहा कि क्या वह उन्हीं बिकाऊ पिल्लों में से एक था और वह अकेला क्यों बैठा था ? दुकानदार ने जवाब दिया कि वह उन्हीं में से एक है मगर अपाहिज है और बिकाऊ नहीं है।

बच्चे ने पूछा ? उसमें क्या कमी है ?

दुकानदार ने बताया की जन्म से ही इस पिल्ले की एक टाँग बिल्कुल खराब है और उसके पूँछ के पास अंगों में भी खराबी है। बच्चे ने पूछा आप इसके साथ क्या करेंगे ? तो उसका जवाब था कि इसे हमेशा के लिए सुला दिया जाएगा। उस बच्चे ने दुकानदार ने पूछा कि क्या वह उस पिल्ले के साथ खेल सकता है। दुकानदार ने कहा क्यों नहीं।

बच्चे ने पिल्ले को को गोद में उठा लिया और पिल्ला उसके कान को चाटने लगा। बच्चे ने उसी समय तय किया की वह उसी पिल्ला को खरीदेगा। दुकानदार ने कहा, यह बिकाऊ नहीं है, मगर बच्चा जिद करने लगा।

इस पर दुकानदार मान गया। बच्चे ने दुकानदार को 200 रुपए दिए और बाकी के 300 रुपए लेने अपनी माँ के पास दौड़ा। अभी वह दरवाजे तक ही पहुँचा था कि दुकानदार ने जोर से कहा, मुझे समझ में नहीं आता कि तुम इस पिल्ले के लिए इतने रुपए क्यों खर्च कर रहे हो, जबकि तुम इतने ही रुपए में एक अच्छा पिल्ला खरीद सकते हो। बच्चे ने कुछ नहीं कहा।

उसने अपने बाएँ पैर से पैंट उठाई, उस पाँव में उसने ब्रेस पहन रखी थी। उसका पूरा पैर खराब था। दुकानदार ने कहा, मैं समझ गया तुम इस पिल्ले को ले जा सकते हो।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, इसी को दूसरों की भावनाएँ समझना कहते हैं। जो दूसरे की भावनाओं को समझता है..दूसरे के भावनाओं का आदर करता करता है..सच्चे अ​र्थों में वहीं इंसान होता है।

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Jeewan Aadhar Editor Desk

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