धर्म

सत्यार्थप्रकाश के अंश—53

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एक किसी वैराग्य में दो चेले थे। वे प्रतिदिन गुरू के पग दाबा करते थे। एक ने दाहिने पग और दूसरे ने बाये पग की सेवा करनी बांट ली थी। एक दिन ऐसा हुआ कि एक चेला कहीं बाजार हाट को चला गया औश्र दूसरा पग की सेवा कर रहा था। इतने में गुरू ने करवट फेरा तो उसका पग पर दूसरे गुरूभाई से सेव्य पग पड़ा। उस ने ले डण्डा पग पर धर मारा। गुरू ने कहा अरे दुष्ट तुने यह क्या किया? चेला बोला कि मेरे सेव्य पग के ऊपर यह पग क्यों आ चढ़ा? इतने में दूसरा चेला जो बाजार कट को गया था,वह आ पहूंचा, वह भी अपने सेव्य पग की सेवा करने लगा । देखा तो पग सूजा पड़ा है। बोला कि गुरू जी वह मेरे सेव्य पग को क्या हो गया? गुरू ने सब वृत्तान्त सुना दिया। वह भी मूर्ख न बोला न चाला। चुपचाप डण्डा उठा के बड़े बल से गुरू के दूसरे पर में मारा तो गुरूदेव ने उच्चस्वर में पुकार मचाई। तब दो दोनों चेले डण्डा लेके पड़े और गुरू के पगो को पीटने लगे। तब तो बड़ा कोलाहल मचा और लोग सुन कर आये। कहने लगे साधु जी क्या हुआ? उन में से किसी बुद्धिमान पुरूष ने साधु को छुड़ा के पश्चात् उन मूर्ख चेलों को उपदेश दिया कि देखा। ये दोनों पग तुम्हारे गुरू के हैं। उन दोनों की सेवा करने से उसी को सुख पहुंचता है और दु:ख देने से भी उसी एक को दु:ख पहुंचता है।
जैसे एक गुरू की सेवा में चेलाओं ने लीला की इसी प्रकार जो एक आखण्ड, सच्चिदानन्दानन्तस्वरूप परमात्मा के विष्णु ,रूद्रादि अनेक नाम हैं। इन नामों को अर्थ जैसा कि प्रथम समुल्लास में प्रकाश कर आये है उस सत्यार्थ को न जान कर शैव,शाक्त, वैष्णवादि सम्प्रदायी लोग परस्पर एक दूसरे के नाम की निन्दा करते हैं। मन्दमति तनिक भी अपनी बुद्धि को फैला कर नहीं विचारते हैं कि ये सब विष्णु,रूद्र, आदि नाम एक अद्वितिय सर्वनियन्ता,सर्वान्तर्यामी,जगदीश्वर के अनेक गुण कर्म, स्वभावयुक्त होने से उसी के वाचक हैं। भला क्या ऐसे लोगों पर ईश्वर का कोप न होता होगा?
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