धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—498

ऊँचे आकाश में सफेद कबूतरों की एक टोली उड़कर जा रही थी। बहुत दूर जाना था उन्हें। लंबा रास्ता था। सुबह से उड़ते-उड़ते थकान होने लगी थी। सूरज तेजी से चमक रहा था। कबूतरों को भूख लगने लगी थी। तभी उन्होंने देखा कि नीचे जमीन पर चावल के बहुत से दाने पड़े थे।

कबूतरों ने एक-दूसरे से कहा, चलो भाई, थोड़ी देर रुककर कुछ खा लिया जाए। फिर आगे जाएँगे। एक बुजुर्ग कबूतर ने चारों ओर देखा। वहाँ दूर -दूर तक कोई घर या मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था। फिर चावल के ये दाने यहाँ कहाँ से आए?

बुजुर्ग कबूतर ने बाकी कबूतरों को समझाया, मुझे लगता है कि यहाँ कुछ गड़बड़ है। तुम लोग नीचे मत उतरो। यह किसी प्रकार कोई साजिश नजर आ रही है। लेकिन कुछ कबूतरों ने उसकी बात नहीं सुनी और तेजी से उतरे दाना चुगने लगे। उन्हें इतने बढ़िया दाने बहुत दिनों के बाद खाने को मिले थे।

वे बहुत खुश थे। जब सभी ने भरपेट खा लिया तो उन्होंने पेड़ पर रुके दूसरों कबूतरों से कहा अरे, अब आप भी आकर दाने खा लों। बूढ़े की बात को मानकर व्यर्थ ही भूखे मर रहे हो। इस पर बूढ़े कबूतर ने उन कबूतरों से कहा पहले आप पेड़ पर आ जाओं। इसके बाद दूसरे कबूतर नीचे दाना चुगने आ जायेंगे।

लेकिन यह क्या? जब उन्होंने उड़ने की कोशिश की तो उड़ ही नहीं पाए। दानों के साथ-साथ वहाँ एक चिड़ीमार का जाल भी था, जिसमें उनके पाँव फँस गए थे। उन्हें अपनी गलती पर पछतावा हुआ। उसी समय शिकारी वहां आया और जाल में फंसे कबूतरों को पकड़कर ले गया।
बूढ़ा कबूतर पेड़ पर बैठे कबूतरों से कहा—हमेशा याद रखों, लालच का फल हमेशा बुरा होता है। इसलिए हमें सदा परिस्थितियों पर धैर्यपूर्वक निर्णय लेना चाहिए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मुफ्त में मिलने वाली चीजें हमेशा हमसे बहुत बड़ा लेकर जाती है। हमें मुफ्त की स्कीमों के लालच में नहीं फंसना चाहिए। हमें किसी भी स्कीम पर तुरंत निर्णय लेने के स्थान पर विवेक से स्थिती पर नजर रखकर उचित परामर्श के बाद ही किसी निर्णय पर पहुंचना चाहिए।

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