धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—524

शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी का पालन-पोषण कृतिकाओं ने एक जंगल में किया था। कृत्तिकाओं ने बालक का पालन किया, इस वजह से बालक का नाम कार्तिकेय पड़ा। कार्तिकेय शिव-पार्वती से दूर एक जगंल में रह रहे थे। जब ये बात भगवान शिव और माता पार्वती को मालूम हुई तो उन्होंने सेवक भेजकर बालक कार्तिकेय को जंगल से कैलाश पर्वत पर बुला लिया था।

अपने पुत्र के कैलाश आने पर शिव और पार्वती बहुत प्रसन्न थे, लेकिन उसी समय सभी देवता भी कैलाश पर्वत पर पहुंच गए थे।

दरअसल, उस समय सभी देवता तारकासुर के आतंक से त्रस्त थे। तारकासुर को वरदान मिला हुआ था कि उसका वध शिव जी का पुत्र ही करेगा। इस वजह से कोई भी देवता उसे पराजित नहीं कर पा रहा था। देवता शिव जी के पास मदद मांगने पहुंचे थे।

कैलाश पर्वत पर देवताओं ने कार्तिकेय स्वामी को देखा तो वे समझ गए कि अब तारकासुर का अंत होना तय है। देवताओं ने कार्तिकेय को विद्या, शक्ति, अस्त्र-शस्त्र दे दिए। लक्ष्मी जी ने एक दिव्य हार दिया। सरस्वती जी ने सिद्ध विद्याएं दीं। सभी बहुत प्रसन्न थे।

उत्सव के बीच में देवताओं ने शिव-पार्वती से प्रार्थना की कि आप कार्तिकेय को हमारे साथ भेज दीजिए। कार्तिकेय ही तारकासुर का वध कर सकते हैं और हम सभी देवताओं की रक्षा कर सकते हैं। कार्तिकेय के पास इतनी योग्यता है कि ये देवताओं का सेनापति बन सकता है।

शिव-पार्वती ने सोचा कि अभी-अभी हमारा पुत्र आया ही है, ऐसे में इसे युद्ध के लिए भेजना बहुत मुश्किल है, लेकिन सभी देवताओं की रक्षा और सभी की भलाई के लिए शिव जी ने कार्तिकेय को देवताओं के साथ भेज दिया। सभी देवताओं के साथ कार्तिकेय स्वामी तारकासुर से युद्ध करने पहुंच गए और उस असुर का वध भी कर दिया। कार्तिकेय स्वामी ने तारकासुर का वध किया तो शिव-पार्वती बहुत प्रसन्न हुए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, इस प्रसंग में शिव जी ने संदेश दिया है कि हमें अपनी संतान को ऐसे संस्कार देना चाहिए, जिससे वह समाज की भलाई के लिए अच्छे काम करे। जब संतान अच्छे काम करती है तो पूरे परिवार को मान-सम्मान मिलता है।

Shine wih us aloevera gel

https://shinewithus.in/index.php/product/anti-acne-cream/

Related posts

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—223

स्वामी राजदास : मृत्यु का भय

Jeewan Aadhar Editor Desk

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—164

Jeewan Aadhar Editor Desk