धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—128

देश और समाज के लिए शांति सबसे अधिक ज्यादा आवश्यक है। जिस देश और समाज में शांति होगी वहां तरक्की ज्यादा होगी। सामज और देश के लिए शांति सबसे जरुरी है। इसके लिए कोई भी कीमत ज्यादा नहीं है।

श्री कृष्ण ने 2 बार देश और समाज में शांति के लिए कई तरह से समझौतों का प्रयास किया। अपने ऊपर कलंक भी लगने दिया। पहली बार तो जब कंस का वध करने के बाद उसका ससुर जरासंध बार—बार मथुरा पर आक्रमण करने लगा तो युद्ध को हमेशा के लिए रोकने के लिए उन्होंने मथुरा छोड़कर द्वारिका बसाई। इससे उन पर कलंक लगा। शत्रु पक्ष श्रीकृष्ण को रणछोड़ कहकर पुकारने लगा।

दूसरी बार, कौरव—पांडवों का युद्ध टालने के उन्होंने शांति दूत बनकर जाना पसंद किया। त्रिलोकी का नाथ शांति दूत बनकर गया तो कौरवों ने उन्हें बंधी बनाने का प्रयास किया। लेकिन वहां उनकी दिव्यता को देखकर कौरव भयभीत हो गए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, श्रीकृष्ण की ये लीला संदेश देती है कि हमें विवादों और झगड़ों को जितना हो सके टालने की कोशिश करनी चाहिए। समझौते ज्यादा बेहतर होते हैं। जितना हो आपसी प्रेम बनाएं रखें। विवादों में रिश्तों के साथ इस बात का भी ध्यान रखें कि सही कौन है, गलत कौन है। सदा सही का साथ देना चाहिए। श्री कृष्ण ने अपनी सेना कौरवो की दे दी, लेकिन साथ धर्म का यानि पांडवों का दिया। इसी प्रकार हमें सदा सही का साथ देना चाहिए।

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