धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 549

प्राचीन काल में यूनान में एक महान दार्शनिक हुए सुकरात। देवताओं पर विश्वास नहीं करने, युवाओं को भड़काने जैसे आरोपों में उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। उनके लिए जहर तैयार किया जा रहा था। सूर्यास्त से पहले जहर देने का आदेश था। दोपहर ढल चुकी थी और शाम होने को थी। जो सैनिक उनके लिए जहर तैयार कर रहा था, उसके पास जाकर सुकरात ने कहा, ‘विलंब क्यों कर रहे हो, जरा जल्दी करो।’ सैनिक चकित होकर बोला, ‘आप क्या कह रहें हैं! मैं तो जान-बूझकर धीरे-धीरे कर रहा हूं।’ सुकरात ने कहा, ‘अपने कर्तव्य का पालन करने में ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए।’ उनकी बातें सुन वहीं बैठे कुछ शिष्य रो पड़े।

एक ने कहा, ‘आप हम लोगों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं? आपका जीवन हम सबके लिए कीमती है। अब भी वक्त है। जेल के सारे सिपाही हमारे साथ हैं। हम सब आपको यहां से लेकर सुरक्षित जगह चले चलते हैं।’ सुकरात ने पहले रोते हुए शिष्यों को झिड़का, फिर अन्य शिष्यों से बोले ‘ तुम लोग इस मिट्टी की देह के लिए क्यों इतने परेशान हो? मेरे विचार तो हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे। इस देह के लिए मैं चोरों की तरह भाग जाऊं और छिपकर रहूं? मैंने इस जीवन का बहुत आनंद लिया, अब मैं मृत्यु का आनंद लेना चाहता हूं।’

सांझ ढलने को आ गई थी। जहर का प्याला लाया गया। जैसे लोग चाय-कॉफी लेते हैं, वैसे ही सुकरात ने जहर का प्याला उठाया और उसे खाली कर दिया। जहर पीकर वह लेट गए। शिष्यों ने पूछा, ‘प्रभो! बहुत पीड़ा हो रही होगी।’ सुकरात ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘शिष्यो! यह मेरे जीवन के जागरण का अवसर है। अब मैं हृदय, मन, विचार और शरीर से अलग हो गया हूं।’ अपने जीवन से ही नहीं, मौत से भी सुकरात मनुष्यता को अमर संदेश देते गए।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, ये देह मिट्टी की है। इसके मोह में पड़कर कभी भी अनैतिक कार्य ना तो करने चाहिए और ना ही अनैतिक कार्यों में सहयोगी बनना चाहिए। अपने कर्तव्य का पालन अंतिम क्षण तक करना चाहिए।

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