धर्म

परमहंस स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—34

बहुत पुराने समयों की बात है। एक गाँव में एक पेड़ पर कौवा और हंस रहते थे। गर्मी का दिन था। एक थका हुआ शिकारी उस पेड़ के नीचे आराम करने के लिए रुका। वो बड़े आराम से उस पेड़ की छाया के नीचे सो रहा था। कुछ देर बाद उस शिकारी के मुख से छाया चली गई उसके चेहरे पर तेज़ धुप आ गई थी।

सूर्य की तेज़ धुप को देखकर पेड़ पर बैठे हंस को उस पर दया आ गई। उसने अपने पंखों को पूरी तरह फ़ैलाकर उस आदमी के मुख पर छाया कर दी। छाया होने पर वो आदमी बड़ा आनंद महसूस कर रहा था। सोते—सोते अचानक उसका मुंह खोला।

उस पेड़ पर बैठा बुरी दृष्टि वाला कौवा यह सब कुछ देख रहा था। उससे हंस की यह निम्रता देखी नहीं गई उसने पेड़ के नीचे आराम कर रहे शिकारी के मुंह पर बीठ कर दी और वहां से उड़ गया। परन्तु हंस को उस काले दुष्ट कौवे की हरकत का पता ही ना चला। बीठ गिरते ही शिकारी नींद से जाग गया। उसने देखा के हंस उस पेड़ की टहनी पर अपने पंख फैलाई बैठा था। उसे लगा के जरूर इसने ही उसके मुंह पर बीठ की है। उसने उस हंस की तरफ तीर चला दिया हंस को तीर लगते ही वो वहीँ मर गया।

प्रेमी सुंदरसाथ जी,ठीक कौवे की तरह शकुनि ने कौरव वंश के साथ रहकर उनका विनाश करवा दिया था। हमें अपने दुश्मनों से सचेत रहना चाहिए। कई बार दुश्मन हमारे बीच ही छुपे होते हैं, और हमें उनका पता ही नहीं चलता।

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