एक बार की बात है। हिमालय के पास एक छोटा-सा आश्रम था, जहाँ एक वृद्ध संत निवास करते थे। दूर-दूर से लोग उनके पास अपने दुखों का समाधान पूछने आते थे। एक दिन एक युवक परेशान हाल संत के पास पहुँचा। चेहरे पर निराशा, मन में डर और जीवन के प्रति हताशा—सब कुछ साफ झलक रहा था।
युवक बोला,“गुरुदेव, मैं बहुत कोशिश करता हूँ, पर कामयाबी हमेशा दूर भागती है। मेरा संकल्प टूट जाता है, मन डर जाता है। क्या करूँ?”
संत मुस्कुराए और उसे अपने साथ आश्रम के पीछे ले गए। वहाँ एक विशाल पत्थर पड़ा था। संत बोले, “इस पत्थर को एक इंच भी हिलाकर दिखाओ।” युवक ने पूरा जोर लगाया, पर पत्थर हिला भी नहीं।
थोड़ा झुँझलाकर वह बोला— “गुरुदेव, ये तो असंभव है।”
संत ने शांत स्वर में कहा— “ठीक है, अब एक काम करो। आज से रोज़ केवल पाँच मिनट इस पत्थर को धक्का लगाना। बस पाँच मिनट, बिना यह सोचे कि हिलेगा या नहीं। बस दृढ़ संकल्प से करते रहना।”
युवक ने सोचा—“पाँच मिनट में क्या बिगड़ेगा?”
वह रोज़ जाता, पत्थर को धक्का देता और वापस आ जाता। देखते-देखते दो महीने बीत गए।
एक दिन संत ने युवक को वहीँ बुलाकर पूछा— “क्या बदलाव महसूस हो रहा है?”
युवक बोला— “गुरुदेव, पत्थर तो नहीं हिला… पर मेरे अंदर बहुत बदलाव आ गया है!
मेरे हाथों में ताकत बढ़ गई है, मन पहले जितना डरता नहीं, और रोज़ पाँच मिनट काम करने से मेरे भीतर एक आत्मविश्वास पैदा हो गया है… लगता है मैं कोई भी काम कर सकता हूँ।”
संत ने मुस्कुराकर कहा— “यही तो जीवन का रहस्य है।
जब संकल्प दृढ़ हो और सोच सकारात्मक, तो सफलता स्वयं चलकर आती है—भले ही धीरे।
पत्थर हिले या न हिले, पर तुम्हारे भीतर की क्षमता ज़रूर जाग उठती है। जीत उस पत्थर में नहीं, तुम्हारे अंदर थी—तुमने उसे जगा लिया।”
युवक की आँखें चमक उठीं। उसे समझ आ गया कि जीवन में सबसे बड़ा पत्थर बाहरी बाधाएँ नहीं, बल्कि मन की कमजोरी और नकारात्मक सोच होती है। जब इन्हें जीत लिया जाए, तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं रहता।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, दृढ़ संकल्प रोज़ के छोटे-छोटे प्रयासों से बनता है। सकारात्मक सोच आपके अंदर छुपी ताकत को जागृत कर देती है। जब आप हार नहीं मानते, तभी सफलता हार मान लेती है।








