एक बार एक बड़े शहर में कॉलेज के छात्र एक संत से मिलने आए। उनमें से एक छात्र ने प्रश्न किया— “गुरुदेव, रामायण तो प्राचीन कथा है। आज के आधुनिक युग में उसका क्या महत्व है? क्या वह केवल पढ़ने-सुनने के लिए है?”
संत मुस्कुराए और बोले—”वत्स! रामायण केवल कथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।”
फिर उन्होंने एक कथा सुनाई— अरविंद नाम का युवक बड़ी कंपनी में काम करता था। वह होशियार था, पर काम में जल्दबाज़ी करता, गुस्सा करता और हर बात में अपनी जीत चाहता। एक दिन उसके बॉस ने उसे डांट दिया। अरविंद उदास मन से मंदिर पहुँचा, जहाँ संत रामायण का पाठ कर रहे थे।
संत ने उस समय श्रीराम के चरित्र का वर्णन किया—”राम वनवास गए, पर क्रोध नहीं किया। उन्होंने कठिनाई में भी धैर्य और धर्म का पालन किया।”
यह सुनकर अरविंद के मन में विचार आया—”अगर श्रीराम जैसे राजकुमार कठिनाई में भी संयम रख सकते हैं, तो मैं छोटी-सी बात पर क्यों टूट जाऊँ?”
दूसरे दिन ऑफिस में उसने धैर्य से काम किया, दूसरों से मीठा बोला और टीम की मदद की। धीरे-धीरे सब उसके प्रशंसक बन गए।
संत ने समझाया— राम का त्याग हमें सिखाता है कि परिवार और समाज के लिए अपने स्वार्थ छोड़ने चाहिए। सीता का धैर्य दिखाता है कि विपत्ति में विश्वास और साहस ही सबसे बड़ी शक्ति है।
लक्ष्मण की सेवा हमें बताती है कि प्रेम में सेवा सर्वोत्तम है। हनुमान की भक्ति यह सिखाती है कि सच्चा समर्पण असंभव को भी संभव बना देता है।
“रामायण का महत्व यही है कि यह केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। जिसे अपनाओ, वही सुख और सफलता पाता है।”
सभी छात्र भाव-विभोर हो उठे और बोले— “गुरुदेव, अब हम रामायण को केवल कथा नहीं, जीवन का पाठ मानेंगे।”