धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 648

एक नगर में अर्जुन नाम का युवक रहता था। बचपन से वह बहुत होशियार था, लेकिन युवावस्था में वह गलत संगत में पड़ गया। दिनभर आलस्य, नकारात्मक सोच और बुरे कामों में समय नष्ट करता। धीरे-धीरे उसका जीवन अस्त-व्यस्त होने लगा। लोग उसे व्यर्थ और निकम्मा कहकर तिरस्कार करने लगे।

एक दिन नगर में एक महान संत का आगमन हुआ। लोग दूर-दूर से उनके दर्शन करने आए। अर्जुन भी केवल उत्सुकता से संत के प्रवचन सुनने चला गया। संत ने बड़ी शांत वाणी में कहा—

“मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा शत्रु उसकी नकारात्मक सोच है। जैसे अंधकार दीपक के प्रकाश से दूर हो जाता है, वैसे ही जीवन की सारी उलझनें सकारात्मक सोच और सही मार्गदर्शन से मिट सकती हैं।”

ये शब्द अर्जुन के हृदय में गहराई तक उतर गए। वह संत के पास जाकर बोला— “गुरुदेव! क्या सचमुच मेरी जिंदगी बदल सकती है?”

संत मुस्कराए और बोले— “बिलकुल! बेटा, आज से तुम हर परिस्थिति में अच्छा सोचना शुरू करो, प्रभु का नाम लो और प्रतिदिन एक अच्छा कार्य अवश्य करो। याद रखो—बाहर की दुनिया बदलने से पहले तुम्हें अपने भीतर की दुनिया बदलनी होगी।”

अर्जुन ने संत के मार्गदर्शन को अपनाया। उसने नकारात्मक संगति छोड़ दी, हर काम में भगवान का स्मरण करने लगा और दूसरों की मदद करने में आनंद पाने लगा। धीरे-धीरे उसके जीवन में परिवर्तन आने लगा। लोग, जो पहले उसे व्यर्थ समझते थे, अब उसे सम्मान देने लगे। अर्जुन अब हर किसी के लिए प्रेरणा बन गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, सही मार्गदर्शन मनुष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। सकारात्मक सोच से असंभव भी संभव हो जाता है। भीतर का बदलाव ही बाहर के जीवन को सुंदर बनाता है।

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