एक आश्रम में एक युवा शिष्य अपने गुरु के पास गया। उसने कहा – “गुरुदेव, मैं कोई बड़ा कार्य करना चाहता हूँ, लेकिन सोचता हूँ कि पहले कोई शुभ मुहूर्त निकले। तभी शुरू करना उचित होगा।”
गुरु मुस्कराए और बोले – “अच्छा, तो तू कब से उस शुभ घड़ी की प्रतीक्षा कर रहा है?”
शिष्य बोला – “गुरुदेव, लगभग दो वर्ष से। जब-जब मैंने सोचा, मुझे लगा कि समय अभी पूर्ण नहीं है।”
गुरुजी ने उसे अपने साथ नदी किनारे ले गए। वहाँ उन्होंने एक पौधा दिखाया और कहा –
“इस पौधे को देखो। यह बीज मैंने तीन वर्ष पहले बोया था। अगर मैं शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा करता रहता, तो आज यह पौधा भी न होता। बीज बोना अपने आप में शुभ है। अगर तुम न बोओ, तो हजारों शुभ घड़ियाँ भी निष्फल होंगी।”
फिर गुरु ने कहा – “सही समय की प्रतीक्षा करना बुरा नहीं है, परंतु अवसर को पहचानकर तुरंत कार्य करना ही सच्चा शुभ मुहूर्त है। समय का आदर करो, लेकिन उसे बहाने की तरह मत टालो। हर क्षण भगवान का दिया हुआ है, और कर्म ही उसे मंगलमय बनाता है।”
शिष्य की आँखें खुल गईं। उसने उसी दिन अपना कार्य आरंभ किया और धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, मुहूर्त का आदर करना चाहिए, लेकिन अनंत प्रतीक्षा करना मूर्खता है। शुभ समय वही है जब आप अपने संकल्प के साथ कर्म में उतरते हैं। अवसर हमें नहीं खोजते, हमें ही उन्हें कर्म के द्वारा साकार करना होता है।