धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 325

एक गांव में दो यात्री पहुंचे, एक यात्री ने गांव के वृद्ध से पूछा कि इस गांव के लोग कैसे हैं? वृद्ध ने यात्री से पूछा कि पहले ये बताओ तुम्हारे गांव के लोग कैसे हैं? यात्री ने दुखी होते हुए कहा कि बाबा, मैं जिस गांव से आ रहा हूं, वहां के लोग बहुत बुरे हैं, उन लोगों ने कभी भी मेरी मदद नहीं की। गांव के लोग हमेशा मुझे भला-बुरा कहते हैं। इसीलिए मैं वो गांव छोड़कर यहां आ गया हूं।

वृद्ध व्यक्ति ने कहा कि इस गांव के लोग भी बहुत बुरे हैं, यहां भी कोई मदद करने वाला नहीं है। ये बात सुनकर वह यात्री दूसरे गांव की ओर निकल गया। कुछ देर बाद एक और यात्री उसी गांव में आया और उसी वृद्ध से पूछा कि इस गांव के लोग कैसे हैं? क्या यहां के लोग दूसरों की मदद करते हैं? वृद्ध ने उससे पूछा कि तुम जिस गांव में रहते हो, वहां के लोग कैसे हैं?

दूसरे यात्री ने खुश होकर कहा कि मैं जहां से आया हूं, वहां के लोग बहुत अच्छे हैं। हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। मैं रोजगार की तलाश में इस गांव में आया हूं। ये सुनकर वृद्ध ने कहा कि इस गांव के लोग भी बहुत अच्छे, सभी दूसरों की मदद करते हैं। ये सुनकर दूसरा यात्री उसी गांव में रुक गया।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, जैसे हम हैं, वैसे ही हमारे विचार हो जाते हैं और हम दूसरों को भी वैसा ही समझने लगते हैं। इसलिए यदि कोई आपको बुरा लग रहा है तो पहले आप स्वयं को देखों, देखों कहीं बुराई आपके भीतर तो नहीं है। जिसके भीतर बुराई है उसे हर जगह बुराई ही दिखाई देगी। सुअर को यदि बाग में भी लेकर जाओगे तो वह वहां भी कीचड़ को खोजेगा। यदि कीचड़ नहीं मिला तो वह वहां नहीं रुकेगा।

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