एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ गोवर्धन पर्व की कथा सुना रहे थे। उन्होंने कहा — “गोवर्धन पूजा केवल गोबर के पर्वत की पूजा नहीं है, यह मनुष्य के स्वावलंबन और सामूहिक सहयोग की शिक्षा है।”
संत जी ने कथा आरंभ की — जब इन्द्रदेव ने मूसलाधार वर्षा की और गाँव जल में डूबने लगा, तब श्रीकृष्ण ने कहा, “इन्द्र को प्रसन्न करने से पहले हमें प्रकृति और परिश्रम को प्रसन्न करना चाहिए।” उन्होंने गोवर्धन पर्वत उठाकर सबको एक ही छत्रछाया में सुरक्षित किया।
संत जी बोले — “इस घटना में बिजनेस की सबसे बड़ी सीख छिपी है।”
उन्होंने समझाया —
स्वावलंबन (Self-Reliance): जब व्यापार में संकट आए, तो दूसरों की कृपा पर नहीं, अपनी क्षमता पर भरोसा करें। जैसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा रोककर नया मार्ग दिखाया।
सामूहिकता (Teamwork): गोवर्धन उठाते समय सभी ब्रजवासी साथ खड़े थे — यही आधुनिक व्यवसाय में टीम की ताकत है।
प्रकृति से जुड़ाव: श्रीकृष्ण ने पर्वत, गाय और धरती की पूजा की — आज का बिजनेस भी सस्टेनेबल और नेचर-फ्रेंडली होना चाहिए।
संकट में नेतृत्व (Leadership in Crisis): जब बारिश बढ़ी, लोग घबरा गए, तब कृष्ण मुस्कराए — सच्चा लीडर वही है जो संकट में शांति और समाधान दिखाए।
संत जी ने अंत में कहा — “गोवर्धन पूजा हमें सिखाती है कि व्यापार में भगवान की कृपा तभी टिकती है, जब हम प्रकृति, परिश्रम और पारस्परिक सहयोग का संतुलन बनाए रखें। जो दूसरों को छाया देता है, वही सच्चा गोवर्धन उठाने वाला होता है।”
धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, “संकट में छाया देना ही सेवा है, और सेवा में ही सच्चा व्यवसाय है।”









