धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से— 710

एक बार गुरु नानक देव जी के पिता, श्री मेहता कालू जी ने सोचा — “नानक अब बड़ा हो गया है, इसे व्यापार करना सिखाना चाहिए।”

उन्होंने 20 रुपए दिए और कहा, “बेटा! इन पैसों से कोई सच्चा सौदा (अच्छा व्यापार) कर के दिखाओ।”

गुरु नानक जी अपने मित्र भाई मर्दाना के साथ बाजार की ओर निकले। रास्ते में उन्होंने देखा — कुछ भूखे, गरीब और बीमार लोग रास्ते के किनारे बैठे हैं।

नानक देव जी ने मर्दाना से कहा, “भाई! इससे बड़ा सच्चा सौदा क्या होगा, जो भूखों को भोजन और जरूरतमंदों को सहायता दी जाए।”

उन्होंने उन 20 रुपयों से अनाज खरीदा, लोगों को खिलाया और कहा — “यही है सच्चा व्यापार — मानव सेवा।”

जब वे घर लौटे तो पिता ने पूछा, “नानक! व्यापार किया?”
गुरु जी मुस्कराए और बोले — “हाँ पिता जी, मैंने सच्चा सौदा किया — जिसमें लाभ भी है और शांति भी।”

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, गुरु नानक देव जी की इस कथा से हमें यह सिखने को मिलता है — “सबसे बड़ा धर्म मानव सेवा है।” “सच्चा सौदा वही है, जिसमें दूसरों का भला हो।” “कमाओ, बाँटो और नाम जपो।”

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Jeewan Aadhar Editor Desk