धर्म

परमहंस संत शिरोमणि स्वामी सदानंद जी महाराज के प्रवचनों से—324

पुराने समय में एक व्यक्ति से देवी लक्ष्मी की पूजा-पाठ करता था, लेकिन उसके जीवन की समस्याएं खत्म नहीं हो पा रही थीं। तभी एक संन्यासी ने उस व्यक्ति को पूजा करते हुए देखा। संन्यासी को समझ आया कि वह पूजा सही ढंग से नहीं कर रहा है।

तब संन्यासी ने उस व्यक्ति को पूजा की विधि और देवी लक्ष्मी का एक मंत्र बताया और कहा कि रोज सच्चे मन से इस मंत्र का जाप करना। व्यक्ति ने संत द्वारा बताई गई विधि से पूजा करना शुरू कर दी और रोज मंत्र का जाप भी करने लगा। कुछ दिनों के बाद देवी लक्ष्मी उस व्यक्ति की भक्ति से प्रसन्न हो गईं और उसके सामने प्रकट हो गईं।

लक्ष्मीजी ने उस व्यक्ति से कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं, मांगों वत्स क्या मांगना चाहते हो? मैं तुम्हारी सारी इच्छाएं पूरी कर सकती हूं।

व्यक्ति ने लक्ष्मीजी से कहा कि देवी मुझे अभी कुछ समझ नहीं आ रहा है, मैं आपसे क्या मांगू? आप कृपया कल फिर आइए, मैं कल आपसे वर मांगना चाहता हूं। लक्ष्मी अपने भक्त की बात मान गईं और अंतर्ध्यान हो गईं।

लक्ष्मीजी के जाने के बाद भक्त बेचैन हो गया। उसने सोचा कि बहुत सारा धन मांग लेता हूं। फिर सोचा कि मैं किसी राज्य का राजा बन जाता हूं। इसी तरह के सोच-विचार में पूरा दिन और पूरी रात निकल गई, लेकिन वह तय नहीं कर सका कि देवी क्या मांगना चाहिए। उसे रातभर नींद भी नहीं आई।

अगले दिन देवी लक्ष्मी उसके सामने फिर प्रकट हो गईं और कहा कि अपना अपना वर मांग लो। उस व्यक्ति ने कहा कि देवी मैं कुछ मांगना नहीं चाहता। धन और सुख-सुविधाओं के आने की खुशी मात्र से ही मैं अशांत हो गया। अगर ये चीजें मुझे मिल जाएंगी तो मेरा पूरा जीवन ही अशांत हो जाएगा। मुझे सिर्फ मेरे जीवन में शांति चाहिए। बस यही वर दीजिए कि मेरा मन आपकी भक्ति में लगा रहे। देवी लक्ष्मी उसकी भक्ति से प्रसन्न हो गईं और तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गईं।

धर्मप्रेमी सुंदरसाथ जी, यह है कि अगर हम जीवन में सुख-शांति चाहते हैं तो हमें संतुष्टि का भाव अपनाना चाहिए। जीवन में संतुष्ट रहना चाहिए। अंसतुष्ट रहेंगे तो कभी भी शांति प्राप्त नहीं कर सकते हैं।

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